मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से एक ऐसी सनसनीखेज कहानी सामने आई है, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया है। इलाज के नाम पर 23 मासूम बच्चों की जिंदगियां दांव पर लगा दी गईं और अब खुलासा हुआ है कमीशन का काला कारोबार।
पुलिस का कहना है कि आरोपी डॉक्टर ने कथित तौर पर 10% कमीशन के लालच में मिलावटी कफ सिरप के पर्चे लिख दिए। हालांकि, डॉक्टर के वकील इन आरोपों को पूरी तरह झूठा बता रहे हैं।
हर बोतल पर सिर्फ 2.45 रुपए के लिए बच्चों की जान जोखिम में!केवल 24.54 रुपए वाली इस कफ सिरप ने दर्जनों बच्चों की जान ले ली। पुलिस के मुताबिक, हर बोतल पर 2.45 रुपए कमीशन पाने के लिए डॉ. प्रवीण सोनी बच्चों को ये सिरप लिखते रहे। अब इस मिलावटी सिरप बनाने वाली कंपनी का मालिक और पर्चे पर सिरप लिखने वाला डॉक्टर प्रवीण सोनी दोनों पुलिस हिरासत में हैं।
डॉ. सोनी को हर बोतल पर 10% कमीशन का फायदा!पुलिस जांच में डॉ. प्रवीण सोनी ने खुद अपने बयान में कबूल किया कि उन्हें हर बोतल पर 10 फीसद कमीशन मिलता था। ऊपर से, जो दवाएं वे लिखते थे, उनकी बिक्री उनकी पत्नी और भतीजे की दवा दुकान से होती थी। लेकिन अभी तक इस केस में डॉ. सोनी के किसी रिश्तेदार को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
छिंदवाड़ा के एसपी अजय पांडे ने बताया कि डॉ. सोनी के अलावा किसी और को गिरफ्तार या रिमांड पर नहीं लिया गया है। लेकिन जांच चल रही है और जरूरत पड़ने पर सख्त कार्रवाई होगी। डॉ. सोनी के वकील का दावा है कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं।
वकील ने कमीशन वाले आरोप को सिरे से खारिज कियाडॉ. प्रवीण सोनी के वकील पवन शुक्ला ने कहा कि पुलिस को अपनी कहानी पूरी करनी है। कोई ठोस सबूत नहीं है, बस तकनीकी रूप से फंसाने के लिए ये स्टोरी गढ़ी गई। उन्होंने 10 प्रतिशत कमीशन की बात को भी पूरी तरह झूठ बताया।
पुलिस की रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि 18 दिसंबर 2023 को केंद्र सरकार ने पूरे देश में दिशानिर्देश जारी किए थे कि चार साल से कम उम्र के बच्चों को फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाएं न दी जाएं। फिर भी डॉ. सोनी ने ऐसी खतरनाक दवा लिखी। उन्हें पता था कि इससे बच्चों की किडनी खराब हो रही है, लेकिन लालच में वे रुक नहीं पाए।
डॉक्टरों पर पहले भी लगे हैं गंभीर आरोपये कोई नई बात नहीं है। 10 साल पहले मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में शिकायत आई थी कि 14 जिलों के 20 बड़े प्राइवेट डॉक्टरों ने एक फार्मा कंपनी के खर्चे पर सपरिवार इटली घूम आए। बदले में उन्होंने कंपनी की दवाएं मरीजों को लिखीं। 2008 से 2011 के बीच एक और स्कैंडल हुआ, जहां सरकारी डॉक्टरों पर मरीजों की जानकारी और सहमति के बिना अवैध ड्रग ट्रायल के आरोप लगे। फार्मा कंपनियों पर सरकार के यूनिफॉर्म कोड फॉर फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रेक्टिस के तहत कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन कुछ हुआ ही नहीं।
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