–डिग्री के चक्रव्यूह में फंसा है ज्ञान
प्रयागराज, 30 अप्रैल . प्राकृतिक भोजन बीमारियों के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती है. प्रकृति हमें स्वस्थ रखने और रोगों से बचने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है. प्राकृतिक चिकित्सा में चिकित्सा रोग की नहीं बल्कि रोगी की होती है. प्राकृतिक चिकित्सा आधुनिक प्रणाली है, जो प्राकृतिक तरीके से खुद को ठीक करने की क्षमता पर जोर देती है.
यह बातें एसकेआर योग एवं रेकी शोध प्रशिक्षण और प्राकृतिक संस्थान में मधुबन बिहार स्थित प्रयागराज रेकी सेंटर पर बुधवार प्रातः आयोजित स्पर्श ध्यान कार्यक्रम के पश्चात जाने-माने स्पर्श चिकित्सक सतीश राय ने कही l
–विषाक्त पदार्थों के सेवन से बीमारियां
उन्होंने कहा खराब आहार शरीर को ठीक से काम करने से रोकता है और शरीर में विषाक्त पदार्थों के संग्रह से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं. मौसम बदलने पर बार-बार बीमार पड़ने का कारण खराब आहार है l
–भारत वात प्रकृति का देश है
सतीश राय ने कहा कि यह देश सांस्कृतिक धरोहरों का देश है, यहां अनेकों उपचार पद्धतियां हैं. किसी भी पद्धति को अपनाकर स्वस्थ रहा जा सकता है. भारत की प्राचीन उपचार पद्धतियों में आयुर्वेद का भी नाम आता है. जो शरीर में तीन दोषों वात – पित्त और कफ को संतुलित करने पर ध्यान देती है. आयुर्वेद के अनुसार देश की भी प्रकृति होती है. हमारा देश भारत वात प्रकृति का देश है. यहां पर सूखी हवा ज्यादा समय तक चलती है. भारत में मौसम के अनुसार यहां के लोगों को तेज दौड़ना बिल्कुल अच्छा नहीं है. यहां पर ऐसे व्यायाम करें जिसमें वायु न बढ़े, धीरे-धीरे वाले एक्सरसाइज करना चाहिए l
–यहां के वैद्य नाड़ी चिकित्सा के जानकार थे
सतीश राय ने कहा कि देश में अच्छे वैद्यों की कमी हो गई है. पूर्व में यहां के वैद्य नाड़ी चिकित्सा के जानकार थे. वह हाथ की नस देखकर छूकर रोग का पता लगा लेते थे. पुराने वैद्यों के पास कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं था. वह स्कूल कॉलेज में नहीं पढ़े थे. फिर भी हाथ की नाड़ी पड़कर शरीर के सभी रोगों को बता देते थे. हफ्ते भर में क्या-क्या खाया है, सब बता देते थे. जो आज करोड़ों रुपए के अत्याधुनिक मशीनें भी सही जानकारी नहीं दे पा रहे है. ज्ञान आधारित हिंदुस्तान इस समय डिग्री के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है. वर्तमान में ज्ञान और अनुभव से प्राप्त शिक्षा का कोई महत्व नहीं है.
–यहां के मौसम भी वात-पित्त-कफ में बंटे हैं
सतीश राय ने कहा कि यहां के मौसम भी वात पित्त कफ में बंटे हुए हैं. जैसे नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी वात के महीने माने जाते हैं. वात दोष के कारण हड्डियों से सम्बंधित बीमारियां ज्यादा होती हैं. कमर दर्द, घुटनों का दर्द, जोड़ों का दर्द, अर्थराइटिस, कंधे का दर्द, बीपी का बढ़ना या बीपी का घटना, ब्रेन हेमरेज, कमजोरी, हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, शरीर में दर्द, जिसमें शरीर का हिलना डुलना मुश्किल हो जाए, अच्छी नींद नहीं आएगी अर्थात वायु बढ़ी है वात बढ़ी है.
–गर्मियों के महीने पित्त के महीने माने जाते हैं
सतीश राय ने कहा कि गर्मियों के महीने पित्त के महीने माने जाते हैं. पित्त दोष जैसे गैस, खाना न पचना, डायरिया, सिर दर्द, उल्टी, पेट में जलन, गले में जलन, छाती में जलन, एसिडिटी, अल्सर सफेद दाग, पीलिया खट्टी डकारें जैसे रोग होते हैं.
–फास्फोरस की कमी में गुड़ का करें सेवन
जुलाई से अक्टूबर तक के महीने कफ प्रकृति का माना जाता है. कफ जब बिगड़ता है तो शरीर में फास्फोरस की कमी हो जाती है. इसमें गुड़ का सेवन करना अच्छा माना गया है. इसके बिगड़ने पर शरीर का वजन बढ़ता है, मोटापा आता है. कफ पृथ्वी और जल तत्व से मिलकर बना है. शरीर में कफ का अंग पेट और छाती है. कफ दोष में पाचन क्रिया प्रभावित होती है. इसमें सर्दी जुकाम के साथ-साथ सुस्ती थकान और डिप्रेशन के रोग होते हैं.
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/ विद्याकांत मिश्र
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