सिवनी, 08 अक्टूबर(Udaipur Kiran News) . भारत के जंगलों की कहानी में पेंच नेशनल पार्क का नाम अब सिर्फ़ बाघों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने समृद्ध और सजीव पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी दर्ज हो गया है. हालिया सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि देश में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे अधिक खुरयुक्त (Hoofed) वन्यजीव पेंच टाइगर रिजर्व में पाए जाते हैं.’’
पेंच के कोर क्षेत्र का यह जंगल जो लगभग 411 वर्ग किलोमीटर’’ एरिया में फैला है अपने छोटे आकार के बावजूद असाधारण जैव विविधता का केंद्र है. यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर 94.85 खुरयुक्त वन्यजीव पाए गए हैं. इनमें चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सूअर और गौर जैसे प्राणी शामिल हैं, जो जंगल की खाद्य श्रृंखला की रीढ़ माने जाते हैं. यही जीव बाघों, तेंदुओं और जंगली कुत्तों जैसे शिकारी प्राणियों के लिए जीवन आधार हैं.
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि पेंच का यह संतुलन “इकोलॉजिकल परफेक्शन” का उदाहरण है. पेंच प्रबंधन के अनुसार पेंच में शिकार प्रजातियों की संख्या और उनकी स्थिरता ही इस रिजर्व को इतना जीवंत बनाए रखती है. यहां का वन क्षेत्र और जल स्रोत इतने संतुलित हैं कि हर प्रजाति को अपने अनुकूल आवास मिल जाता है.
जैव विविधता का जीवंत कैनवास
पेंच केवल बाघों का ही नहीं, बल्कि हजारों प्रजातियों का साझा घर है. यहाँ 285 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ,39 स्तनधारी प्रजातियाँ,50 प्रकार के तितलियाँ और 100 से अधिक किस्म के पौधे और वृक्ष’’ पंजीकृत हैं. सुबह की पहली किरण के साथ जब चीतल के झुंड घास चरते दिखते हैं और मयूर अपनी धुन में नाचता है, तब यह जंगल मानो जीवन की कविता बन जाता है.
सिवनी और आसपास के गाँवों के लोग इस सफलता का हिस्सा हैं. वन विभाग और स्थानीय समुदायों ने मिलकर “ईको डेवलपमेंट कमेटियाँ” बनाई हैं, जिनकी मदद से अवैध शिकार पर लगाम लगी है और पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा मिला है.
ग्राम टुरिया के निवासी बताते हैं कि पहले जानवर खेतों तक आ जाते थे, अब जंगल का संतुलन बेहतर हो गया है. गाँव के लोग खुद निगरानी करते हैं, क्योंकि यह हमारा अपना जंगल है.”
पर्यटन और संरक्षण का संतुलन
हर साल हजारों पर्यटक पेंच की बाघिन ‘कॉलरवाली’ की यादों से लेकर नए शावकों की झलक पाने आते हैं. लेकिन अब उन्हें सिर्फ़ बाघ ही नहीं, बल्कि पूरा विकसित पारिस्थितिक चक्र देखने को मिलता है. प्रबंधन अब “रेस्पॉन्सिबल टूरिज़्म” पर ज़ोर दे रहा है ताकि वन्यजीवों की निजता और जंगल का मौलिक स्वरूप बरकरार रहे.
भविष्य की राह
पेंच की यह उपलब्धि सिर्फ़ सिवनी की नहीं, बल्कि पूरे भारत के संरक्षण मॉडल की सफलता का प्रतीक है. यहाँ यह साबित हुआ है कि अगर जंगल को उसके प्राकृतिक रूप में रहने दिया जाए, तो प्रकृति खुद अपने संतुलन को पुनर्स्थापित कर लेती है.
(Udaipur Kiran) / रवि सनोदिया
You may also like
क्लासरूम से बोर्डरूम तक... दिल्ली सरकार शुरू कर रही है 'स्टार्टअप यूथ फेस्टिवल', स्टूडेंट्स के लिए शानदार मौका
RBI का रियल-टाइम चेक सिस्टम बना सिरदर्द, तकनीकी गड़बड़ियों से ग्राहकों को झेलनी पड़ रही देरी; बढ़ा चेक क्लियरिंग का समय
Teeth Care Tips- नीम की दातून ना केवल दांतों को स्वस्थ रखती हैं, बल्कि इन बीमारियों से भी करती हैं रक्षा
थायरॉइड की समस्या से कैसे मिलेगी निजात, आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से समझ लें
कफ सिरप से बच्चों की मौत : आईएमए ने किया बाल रोग विशेषज्ञ की गिरफ्तारी के विरोध में एकजुटता का आग्रह