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राष्ट्र को आगे बढ़ाएं देश के कर्णधार युवा : राज्यपाल

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– शोध के निष्कर्ष सरकार तक पहुँचें, व्यावहारिक उपयोग हो : राज्यपाल आनंदीबेन पटेल

गोरखपुर, 25 अगस्त (Udaipur Kiran) । दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय का 44वां दीक्षांत समारोह आज दोपहर बाबा गम्भीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित हुआ। समारोह की अध्यक्षता माननीय कुलाधिपति एवं उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने की। मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. आशुतोष शर्मा, इंस्टिट्यूट चेयर प्रोफेसर, आईआईटी कानपुर ने दीक्षांत व्याख्यान दिया और उन्हें मानद डी.एससी. की उपाधि प्रदान की गई। उच्च शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय तथा उच्च शिक्षा राज्य मंत्री रजनी तिवारी विशिष्ट अतिथि रहे।

समारोह से पूर्व विद्वत पदयात्रा निकाली गई, जो ज्ञान और परंपरा के प्रतीक के रूप में आयोजित हुई। समारोह में शहर के गणमान्य व्यक्तियों, शिक्षकों, अधिकारियों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों एवं अन्य सहभागियों ने भाग लिया।

कुलाधिपति एवं उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि युवा देश के कर्णधार हैं और उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी राष्ट्र को आगे बढ़ाना है। उन्होंने स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई दी और कहा कि जिन्हें पदक नहीं मिला है, उन्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा कि हर विद्यार्थी के भीतर कोई न कोई विशेष प्रतिभा होती है, जिसे उजागर करने में शिक्षक, परिवार और मित्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षण को सेवा बताते हुए उन्होंने कहा कि जब भी वे भ्रमण पर जाती हैं, तो छात्राएँ उन्हें अपनी ‘शिक्षिका’ के रूप में पहचानती हैं—यही एक शिक्षक का सबसे बड़ा गौरव है।

राज्यपाल ने विद्यार्थियों से कहा कि आपकी उपस्थिति लैब, लेक्चर और लाइब्रेरी में अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। उत्तर प्रदेश देश की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला प्रदेश है, इसलिए विश्वविद्यालयों को और अधिक जिम्मेदारी से कार्य करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि 75 फीसद उपस्थिति अनिवार्य होगी, अन्यथा विद्यार्थी परीक्षा में शामिल नहीं हो सकेंगे। साथ ही, महाविद्यालयों को समय पर प्रैक्टिकल और परीक्षाएँ सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।

शोध पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्ष केवल प्रकाशित ही न हों, बल्कि नगर निगम, जिलाधिकारी और सरकार तक पहुँचें तथा उनका व्यावहारिक उपयोग भी हो। अयोध्या में प्रदूषण पर किए गए शोध का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि निष्कर्ष निकालना पर्याप्त नहीं, बल्कि उस पर आगे की कार्रवाई आवश्यक है।

उन्होंने विश्वविद्यालय को सुझाव दिया कि एमओयू के बाद वास्तविक गतिविधियाँ—जैसे लेक्चर एक्सचेंज, उद्योगों से सहयोग और अंतरराष्ट्रीय शोध साझेदारी—सुनिश्चित की जानी चाहिए। नेपाल और अन्य पड़ोसी देशों के विश्वविद्यालयों से अकादमिक सहयोग बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि पेटेंट का व्यावसायीकरण होना चाहिए और उद्योगों को इस दिशा में जोड़ना चाहिए। राज्यपाल ने समर्थ पोर्टल के माध्यम से लगभग 200 करोड़ रुपये की बचत पर विश्वविद्यालय की सराहना की। साथ ही, 34 अंतरराष्ट्रीय छात्रों के नामांकन पर बधाई देते हुए कहा कि यह नैक ए++ ग्रेड और एनआईआरएफ रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन का परिणाम है।

कुलाधिपति ने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा – “आप सबके भीतर हजारों मोदी हैं। अपने अंदर की क्षमता को पहचानो और जिम्मेदारी उठाओ।”

अंत में उन्होंने स्वर्ण पदक विजेताओं से कहा – “सोना मत माँगिए। जिंदगी मांगने से नहीं, बल्कि मेहनत से पूरी होती है।”

उन्होंने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में केवल पैसे को महत्व न दें, बल्कि संस्कार और मूल्यों को ध्यान में रखकर ही निर्णय लें।

सफलताएं साझा होती हैं, असफलताएं व्यक्तिगत : पद्मश्री प्रो. आशुतोष शर्मा

मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. आशुतोष शर्मा (पूर्व सचिव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार) ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि दीक्षांत केवल एक शैक्षणिक उपाधि प्राप्त करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों की मेहनत, धैर्य और संकल्प का उत्सव है। यह दिन उनके जीवन की नई यात्रा का प्रतीक है, जहाँ वे अपने कर्तव्यों और समाज के प्रति जिम्मेदारियों को स्वीकारते हैं। प्रो. शर्मा ने कहा कि सफलताएँ कभी केवल व्यक्तिगत प्रयास का परिणाम नहीं होतीं, बल्कि वे टीमवर्क और सामूहिक सहयोग से संभव होती हैं। असफलताएँ व्यक्ति की अपनी हो सकती हैं, लेकिन सफलताएँ हमेशा साझा होती हैं। यही जीवन का सबसे बड़ा पाठ है।

मेडल पाने वाले छात्र बने समाज और देश के मॉडल: योगेंद्र उपाध्याय

कैबिनेट मंत्री उच्च शिक्षा योगेंद्र उपाध्याय ने कहा की गोरक्ष नगरी आध्यात्म की नगरी है। गीता प्रेस है, मंदिरों, मठ, चौरी चौरा का शहर है। मेडल पाने वाले छात्रों से कहा की माता पिता गुरुजनों के बिना यह मुकाम संभव नहीं है। यही भारत की प्राचीन संस्कृति रही है। इस संबंध में कोई स्वार्थ नहीं होता है। हर माँ बाप अपने बेटे और शिक्षक अपने छात्र को आगे देखना चाहते हैं। इनके ऋण से कोई मुक्त नहीं हो सकता है। कहा की मेडल प्राप्त करने वाले छात्र देश और समाज के लिए मॉडल बने। कहा की शिक्षा केवल पढ़ाना नहीं है बल्कि सिखाना और संस्कार देने का भी शिक्षक का धर्म है।

डिग्री जिम्मेदारी और समाज सेवा का संकल्प है: रजनी तिवारी

उच्च शिक्षा राज्यमंत्री रजनी तिवारी ने मेधावियों से कहा की शिक्षा यात्रा समापन नहीं है बल्कि नया अध्याय शुरू हो रहा है। इस डिग्री को केवल कागज ने समझे, बल्कि यह एक महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है। यह डिग्री आपको प्रेरणा देगी देश और समाज में योगदान करने के लिए। बोली कि डिग्री पाने वालों में 75 फीसदी बेटियां है। यह बदल रहे भारत और विकसित भारत की तस्वीर है।

बेटियों का परचम, रिकॉर्ड पीएचडी और वैश्विक पहचान: कुलपति

कुलपति प्रो. पूनम टण्डन ने अपने स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह समारोह केवल डिग्री प्रदान करने का नहीं, बल्कि नये भारत की शिक्षा यात्रा में मील का पत्थर है। उन्होंने कहा इस वर्ष 73 हजार से अधिक उपाधि धारियों में 68.53% बेटियां शामिल रहीं। वहीं 76 पदक विजेताओं में 56 छात्राएं रही, यानी 73.33%। यह न सिर्फ बदलते समाज की तस्वीर है बल्कि क्षेत्रीय शिक्षा में महिलाओं की सशक्त उपस्थिति का प्रमाण भी।

शोध के क्षेत्र में भी विश्वविद्यालय ने रिकॉर्ड बनाया। इस वर्ष 301 शोधार्थियों को पीएचडी उपाधि दी गई, जो अब तक की सर्वाधिक संख्या है। पिछले वर्ष यह आंकड़ा 166 और उससे पूर्व मात्र 25 था। कुलपति ने इसे शोध संस्कृति और नवाचार का प्रमाण बताया।

वैश्विक स्तर पर विश्वविद्यालय ने आठ अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों (अमेरिका, मलेशिया, नेपाल व बांग्लादेश) से सहयोग स्थापित किया है। इसी सत्र में 34 विदेशी छात्र विश्वविद्यालय से जुड़े हैं।

पदक वितरण

कुलाधिपति द्वारा समारोह में कुल 76 विद्यार्थियों को पदक प्रदान किए गए, जिनमें 56 छात्राएं और 20 छात्र शामिल थे। विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक 71 और डोनर पदक 90 प्रदान किए गए। कुल 161 मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष 43वें दीक्षांत समारोह में 55 विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक और 85 डोनर पदक प्रदान किए गए थे।

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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय

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