–नाबालिग याची की नैनी जेल से तत्काल रिहाई का आदेश
Prayagraj, 26 सितम्बर (Udaipur Kiran News) . इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपराध के आरोपित किसी नाबालिग को तब तक जेल में नहीं रखा जा सकता जब तक कि वह इक्कीस वर्ष का न हो जाए.
कोर्ट ने कहा गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने पर याची ने दावा नहीं किया कि वह किशोर है. यह दावा पहली बार ट्रायल के लिए आरोप तय होने के बाद निचली अदालत के समक्ष उठाया गया था. ऐसे में न्यायिक आदेश से की गई प्रारम्भिक हिरासत अवैध नहीं हो सकती है. लेकिन, अधिनियम की धारा 9(4) के तहत किशोर होने के दावे के बाद जेल में हिरासत में रखना अवैध होगा. किशोर के दावे के बाद बाल संरक्षण गृह में रखा जाना चाहिए.
कोर्ट ने इस तर्क को भी अस्वीकार कर दिया कि किशोर बंदी को जमानत अर्जी देनी चाहिए. जब आपराधिक न्यायालय में किशोर के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता तो जमानत अर्जी देने का औचित्य नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय तथा न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने किशोर पवन कुमार की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है.
कोर्ट ने जेल अधीक्षक नैनी Prayagraj को निर्देश दिया है कि याची को तत्काल रिहा करें. पुलिस कमिश्नर Prayagraj याची को ट्रायल कोर्ट में पेश करें तथा अदालत धारा 9(2) के अंतर्गत अपराध के समय याची की आयु का निर्धारण करें. तब तक याची को निरोधक अभिरक्षा में रखा जाय.
कोर्ट ने कहा याची की अपराध के समय आयु का निर्धारण कर अदालत किशोर न्याय बोर्ड को अग्रेषित करें. अदालत तय करे की याची की आयु 16 साल से कम थी या अधिक. यदि अधिक थी, तो सुनवाई जारी रखें.
मालूम हो कि, Prayagraj के थरवई थाने में 1 अप्रैल 17 को एफआईआर दर्ज की गई. जिसमें याची, उसके बड़े भाई व मां पर शिकायतकर्ता के भाई की पीटकर हत्या करने का आरोप लगाया गया. याची को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया. मजिस्ट्रेट ने सत्र अदालत को प्रेषित कर दिया. पुलिस ने चार्जशीट दी. सत्र अदालत ने आरोप निर्मित कर दिया. इसके बाद याची की तरफ से अपराध के समय उसके किशोर होने का दावा किया गया. अदालत ने प्रधानाचार्य को बुलाया, पता चला कि याची की आयु 14 साल 3 माह 19 दिन थी. अदालत ने आयु निर्धारण न कर किशोर न्याय बोर्ड को भेज दिया. बोर्ड ने 15 मई 25 को याची को किशोर घोषित कर जेल अधीक्षक को आदेश भेजा. किंतु रिहाई नहीं की गई तो निरुद्धि आदेश को अवैध करार देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता ने यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की. सरकारी वकील ने कहा मजिस्ट्रेट के आदेश से जेल भेजा गया था, इसलिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है. कोर्ट ने तमाम कानूनी पहलुओं पर विचार करते हुए याची की रिहाई का आदेश दिया है.
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
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