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वैश्विक सुरक्षा, नए विश्व व्यवस्था और भारत-यूरोप संबंधों पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का शानदार इंटरव्यू, डेनमार्क दौरे से दुनिया को दिया मुँह तोड़ जवाब, देखें Viral Video

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हाल ही में डेनमार्क में आयोजित एक विशेष साक्षात्कार में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने वैश्विक राजनीति, नई विश्व व्यवस्था, यूरोप के बदलते रिश्ते, और भारत की अंतरराष्ट्रीय नीति पर अपने विचार साझा किए। इस बातचीत में डेनमार्क के पत्रकार मिस्टर लिपर्ट ने डॉ. जयशंकर से कई अहम सवाल पूछे, जिनके जवाबों से स्पष्ट हुआ कि भारत वैश्विक राजनीति में संतुलन, व्यवहारिकता और स्थिरता की ओर बढ़ रहा है।

डेनमार्क की भारत के लिए अहमियत

मिस्टर लिपर्ट ने सबसे पहले पूछा कि डेनमार्क भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? इस पर डॉ. जयशंकर ने कहा कि डेनमार्क के साथ भारत के संबंध बहुत मजबूत, खुले और भरोसेमंद हैं। दोनों देशों के विचार कई बड़े वैश्विक मुद्दों पर मेल खाते हैं, खासकर स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) और ग्रीन डेवलपमेंट के क्षेत्र में। उन्होंने डेनमार्क के साथ भारत की ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप का भी उल्लेख किया। डेनमार्क यूरोपीय संघ में एक प्रभावशाली सदस्य है और आने वाले समय में यूरोपीय संघ की अध्यक्षता भी करेगा। इसके अलावा, यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य भी है, जो इसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण भूमिका देता है। डॉ. जयशंकर ने डेनमार्क के विदेशी मंत्री रासमस्सेन और प्रधानमंत्री फ्रेडरिकसेन के साथ अपने अच्छे संबंधों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस दौरे का मकसद वैश्विक अस्थिरता के बीच स्थिरता बढ़ाने के लिए साझेदारी को मजबूत करना है।

डेनमार्क की यात्रा का महत्व

डेनमार्क की यात्रा के संदर्भ में डॉ. जयशंकर ने कहा कि यह देश भारत के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, "हमारे संबंध बहुत मजबूत, विश्वसनीय और खुले हैं। डेनमार्क सस्टेनेबिलिटी और ग्रीन डेवलपमेंट के मामले में हमारा अहम साझेदार है। हमारे बीच 'ग्रीन स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप' है। साथ ही, डेनमार्क यूरोपीय संघ में एक प्रभावशाली आवाज है और अगली बार यूरोपीय संघ की अध्यक्षता भी संभालेगा। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य भी है, इसलिए इसकी वैश्विक भूमिका है।" उन्होंने डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन और प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन के साथ काम करने के अनुभव को सकारात्मक बताया।

नए विश्व व्यवस्था में यूरोप और भारत का नजरिया

जब मिस्टर लिपर्ट ने वर्तमान वैश्विक बदलावों और पुराने विश्व व्यवस्था के टूटने की बात उठाई, तो डॉ. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि "टूटना" शब्द थोड़ा ज़्यादा नाटकीय है। उन्होंने कहा कि दुनिया में बड़े बदलाव हो रहे हैं, और इससे अस्थिरता जरूर बढ़ रही है, लेकिन भारत और यूरोप इन बदलावों पर अलग तरह से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। डॉ. जयशंकर ने बताया कि यूरोप की सुरक्षा मुख्यतः अमेरिकी गठबंधन और नाटो (NATO) के भरोसे थी, जबकि भारत ने हमेशा खुद के लिए रणनीतिक और राजनीतिक फैसले लिए हैं। इसलिए भारत को ये बदलाव ज्यादा अस्थिर नहीं लगते। उन्होंने नाटो के "टूटने" के सवाल पर कहा कि नाटो बदल रहा है, टूट नहीं रहा।

यूक्रेन युद्ध पर भारत की स्थिति

यूक्रेन युद्ध पर चर्चा के दौरान डॉ. जयशंकर ने कहा कि यह एक गंभीर और विश्वव्यापी चिंता का विषय है, जिसका असर ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ा है। उन्होंने स्वीकार किया कि किसी देश का दूसरे देश पर आक्रमण करना पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है, लेकिन भारत के अपने ऐतिहासिक और भौगोलिक संदर्भ भी हैं। भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और चीन ने भारत की संप्रभुता का उल्लंघन किया है, और इस संदर्भ में भारत की भावनाएँ अलग हो सकती हैं। डॉ. जयशंकर ने कहा कि भारत हमेशा संवाद और कूटनीति के पक्ष में रहा है और युद्ध के मैदान से समाधान संभव नहीं। इसीलिए भारत ने रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखे हैं और शांति वार्ता की आवश्यकता पर जोर दिया है।

यूरोप में 'सिनिज़्म' या यथार्थवाद?

मिस्टर लिपर्ट ने यूरोप में कुछ अलगाववादी रवैये और "सिनिज़्म" (निराशावाद) की बात कही, जिस पर डॉ. जयशंकर ने इसे 'यथार्थवाद' बताया। उनका कहना था कि यूरोप ने दशकों तक सुरक्षा, ऊर्जा और आर्थिक हितों के लिए अलग-अलग देशों पर निर्भरता रखी थी, जो अब तनाव में हैं। इसलिए यूरोप को अब अपनी सुरक्षा और आर्थिक नीतियों में अधिक स्वायत्तता और यथार्थवाद अपनाना होगा।

भारत-यूरोप आर्थिक और सुरक्षा संबंध

डॉ. जयशंकर ने भारत-यूरोप के बढ़ते आर्थिक और सुरक्षा सहयोग पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत और यूरोप के बीच मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) को तेजी से आगे बढ़ाना उनका मुख्य उद्देश्य है। यह समझौता केवल व्यापार का मामला नहीं, बल्कि दोनों के बीच गहरे रणनीतिक और राजनीतिक संबंधों का प्रतीक भी होगा। डॉ. जयशंकर ने कहा कि यूरोप भारत का सबसे बड़ा आर्थिक भागीदार है और कई यूरोपीय देशों के साथ भारत की सुरक्षा साझेदारी भी मजबूत हो रही है।

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी

मिस्टर लिपर्ट ने डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने पर डॉ. जयशंकर से सवाल किया कि क्या इससे विश्व व्यवस्था बेहतर होगी या खराब? डॉ. जयशंकर ने कहा कि ट्रंप एक "अपने समय का उत्पाद" हैं, जो अमेरिकी समाज की वर्तमान आर्थिक और सामाजिक चिंताओं का परिणाम हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका की नीतियों में बदलाव अमेरिका की आंतरिक परिस्थितियों का प्रतिबिंब है, और केवल किसी एक व्यक्ति को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं।

भारत-पाकिस्तान विवाद में ट्रंप की भूमिका

भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद में ट्रंप की मध्यस्थता पर डॉ. जयशंकर ने कहा कि हाल के संघर्ष को सैन्य स्तर पर दोनों पक्षों ने समझौते से स्थगित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस लड़ाई का समाधान तभी संभव है जब दोनों देशों की सेनाएं सीधे संवाद करें। ट्रंप की कोशिशों को उन्होंने सम्मान दिया, पर कहा कि विवाद का समाधान सरल नहीं है।

वैश्विक आतंकवाद और क्षेत्रीय स्थिरता की चुनौती

डॉ. जयशंकर ने आतंकवाद को वैश्विक सबसे बड़ी चुनौती बताया, जिसने भारत समेत पूरे विश्व को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग और कूटनीतिक संवाद जरूरी है। उन्होंने भारत में हुए आतंकवादी हमले का हवाला देते हुए बताया कि पड़ोसी देशों की भूमिका और संरक्षण इस समस्या को और जटिल बनाता है।

विश्व की अस्थिरता में भारत का दृष्टिकोण

डॉ. जयशंकर ने कहा कि आज की दुनिया में कई क्षेत्रीय और वैश्विक संघर्ष हैं, जैसे कि यूक्रेन, मध्य पूर्व के युद्ध, और अन्य संघर्ष। कोविड-19 महामारी ने भी समाजों को गहरा प्रभावित किया है। इस अस्थिरता के दौर में भारत स्थिरता के लिए साझेदारी और संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है। उनका मानना है कि दुनिया की चुनौतियों का समाधान मिलजुल कर बातचीत और सामूहिक प्रयासों से ही संभव है, भले ही हर देश की प्राथमिकताएं और हित अलग हों।

डॉ. एस. जयशंकर के इस इंटरव्यू से स्पष्ट हुआ कि भारत वैश्विक राजनीति में एक व्यावहारिक, यथार्थवादी और सहयोगात्मक भूमिका निभाना चाहता है। वे विश्व की बदलती राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों को समझते हुए स्थिरता, संवाद और साझेदारी को प्राथमिकता देते हैं। डेनमार्क जैसे छोटे लेकिन प्रभावशाली देश के साथ भारत के रिश्ते न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। भारत के लिए यूरोप एक बड़ा आर्थिक और राजनीतिक भागीदार है, और आगामी वर्षों में भारत-यूरोप के बीच मुक्त व्यापार समझौते और सुरक्षा सहयोग को और मजबूत किया जाएगा। साथ ही, वैश्विक संघर्षों जैसे यूक्रेन युद्ध और आतंकवाद के समाधान में भारत कूटनीति और बातचीत के जरिए स्थिरता लाना चाहता है। यह साक्षात्कार न केवल भारत की विदेश नीति की सूझ-बूझ और व्यावहारिकता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और राजनीतिक स्थिरता के प्रति भारत के संकल्प को भी उजागर करता है।

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