बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही एनडीए गठबंधन में राजनीतिक असहजता की खबरें सामने आ रही हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस बार भाजपा ने अपने चुनावी नैरेटिव को मुख्य रूप से ‘घुसपैठिया’ और राज्य में कथित जनसांख्यिकीय संकट के मुद्दे पर केंद्रित किया है। वहीं उसके सबसे बड़े सहयोगी दल, जदयू, इस एजेंडे से साफ दूरी बनाए हुए हैं और इस मुद्दे को अपने चुनावी प्रचार में प्राथमिकता नहीं दे रहे।
भाजपा का एजेंडा और रणनीति:
भाजपा का मानना है कि राज्य में बढ़ती आबादी और कथित घुसपैठ के मामलों को लेकर जनता में चिंता है। पार्टी इस चुनावी नैरेटिव को अपने प्रचार का मुख्य आधार बनाना चाहती है और इसे वोटरों के बीच सुरक्षित और प्रभावी सरकार बनाने के मुद्दे से जोड़ा जा रहा है। बीजेपी के नेता इसे राज्य की सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संतुलन बनाए रखने का मुद्दा भी मान रहे हैं।
जदयू की दूरी और मतभेद:
हालांकि, जेडीयू इस विषय पर अपने कदम अलग रख रही है। पार्टी का कहना है कि वह चुनाव में विकास और जनता की रोजमर्रा की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है। पार्टी के वरिष्ठ नेता मानते हैं कि भाजपा के एजेंडे को प्राथमिकता देने से गठबंधन के भीतर मतभेद और बढ़ सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जेडीयू की यह दूरी चुनाव में एनडीए की एकजुटता पर असर डाल सकती है, खासकर उन जिलों में जहां जेडीयू की लोकप्रियता बीजेपी की तुलना में अधिक है।
राजनीतिक हलकों की चर्चा:
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि एनडीए के भीतर यह मतभेद अगर खुलकर सामने आए, तो विपक्ष के लिए अवसर पैदा हो सकता है। महागठबंधन इस परिस्थिति का लाभ उठाकर अपने चुनावी संदेश को मजबूत कर सकता है। वहीं एनडीए को अपने सहयोगी दलों के बीच संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
गठबंधन की स्थिरता पर असर:
एनडीए के लिए यह जरूरी है कि चुनावी रणनीति में सभी सहयोगी दलों की प्राथमिकताओं और सीमाओं का ध्यान रखा जाए। अगर मतभेद गहराए, तो यह गठबंधन के प्रचार और वोट शेयर पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में एनडीए की साख और चुनावी प्रदर्शन इस बार विशेष रूप से गठबंधन की सामंजस्यपूर्ण रणनीति पर निर्भर करेगा।
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