ज़िंदगी भी क्रिकेट के मैच जैसी ही है, पूरी तरह अनिश्चित। अब बताइए, कौन जानता है कि अगली गेंद पर चौका पड़ेगा या विकेट उड़ जाएगा? बिल्कुल वैसे ही, हमें ये पता नहीं होता कि अगले मोड़ पर सुख मिलेगा या कोई चुनौती सामने खड़ी हो जाएगी। यही तो इस खेल का मज़ा है, अनिश्चितता ही ज़िंदगी को रोमांचक और खास बनाती है। लेकिन, जैसे एक अच्छा खिलाड़ी खेल की बारीकियों को पढ़कर अंदाज़ा लगा लेता है कि गेंद कैसी आएगी, वैसे ही ज्योतिष भी हमें जीवन की झलक दिखाता है। खासकर कुंडली का चतुर्थ भाव, जो बताता है कि आपका घर-परिवार से रिश्ता कैसा रहेगा, मां का स्नेह और आशीर्वाद कितना मिलेगा, पैतृक संपत्ति कैसी होगी और पढ़ाई-लिखाई में किस्मत साथ देगी या नहीं, मातृभूमि से आपका लगाव कैसा होगा और परिवार से मिले संस्कारों की नींव कितनी मजबूत है।
कुंडली के चौथे भाव को बंधु भाव कहा गया है, क्योंकि असली सहारा हमें मां के प्यार, परिवार के अपनत्व और रिश्तों से ही मिलता है। परिवार, दोस्त और समाज से मिलने वाला सहयोग ही हमारी असली ताक़त बनता है। इनकी स्थिति चौथे भाव से ही पता चलती है। इस भाव को विद्या भाव भी कहते हैं, क्योंकि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रहती। असली शिक्षा तो संस्कारों, मूल्यों और समझदारी से आती है और यही चौथा भाव हमें दिखाता है। चतुर्थ भाव सुख भाव भी है। इसी भाव से पता चलता है कि आपके जीवन में सुख-सुविधाएं कैसी होंगी। बड़े-बड़े मकान, महंगी गाड़ियां, ज़मीन-जायदाद के साथ ही घर की शांति, अपनापन और मन की तसल्ली आदि की स्थिति क्या होगी। यानी, चौथा भाव वह धुरी है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है और याद दिलाता है कि असली आनंद बाहर की चीज़ों से नहीं बल्कि भीतर की तृप्ति और अपनेपन से आता है। यही वजह है कि चौथा भाव आत्मसंतोष की स्थिति का भी संकेतक है।
चतुर्थ भाव से जुड़े ज्योतिष सिद्धांत
कुंडली के 12 भाव होते हैं और सभी भाव महत्वपूर्ण हैं। इनमें चौथा भाव केंद्र भाव (1,4,7,10) में एक अहम केंद्र स्थान है। यह जीवन में मिलने वाली शांति, सुख, विद्या और चरित्र का आधार है। यही भाव प्रारंभिक और सुखी वैवाहिक जीवन का संकेत भी देता है। इसे समझने के लिए हम इसके कई पहलुओं को देखते हैं, चौथे भाव की स्थिति, उसमें कौन सी राशि है, उसका स्वामी ग्रह यानी चतुर्थेश और कारक ग्रह चंद्रमा की स्थिति। इसके अलावा चौथे भाव और उसके स्वामी पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, युति और स्थिति का भी विश्लेषण किया जाता है।
कालपुरुष कुंडली या प्राकृतिक कुंडली (ऊपर दी गई उदाहरण कुंडली ) में चौथा भाव कर्क राशि में आता है, जिसका स्वामी है चंद्रमा। चंद्रमा माता का प्रतीक ग्रह है, और एक मां अपने बच्चों के प्रति अपने स्नेह और देखभाल के लिए जानी जाती है। इसे ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि चौथे भाव में कोई ग्रह अशुभ नहीं माना जाता। चौथा भाव मुख्य रूप से जल तत्व का प्रधान होता है और व्यक्ति के भावनात्मक और संवेदनशील पक्ष को दर्शाता है। यदि चौथा भाव और उसका स्वामी अच्छी स्थिति में न हों, तो व्यक्ति जीवन में सुख और शांति की कमी महसूस कर सकता है। इसका नकारात्मक प्रभाव शिक्षा, मातृ सुख, जमीन, वाहन आदि पर भी पड़ सकता है।
चौथा भाव भाई-बहनों की संपत्ति, जीवनसाथी के पेशे या करियर और ससुराल वालों का भाग्य भी दर्शाता है। इसका दोष इन क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है। चौथा भाव घर और परिवार का प्रतीक है। यह हमें सुरक्षित, प्यार और देखभाल से भरे निजी स्थान बनाने के लिए प्रेरित करता है। यही भाव हमारे परिवार या चुने हुए रिश्तेदारों (पालतू जानवर आदि) के साथ संबंधों को भी नियंत्रित करता है। चौथे भाव से जुड़े शरीर के अंग हैं छाती और फेफड़े। इसलिए यह भाव हमारे मन की शांति, घरेलू जीवन, घर, जमीन और पैतृक संपत्ति, वाहन, भौतिक समृद्धि, वंश, संस्कृति, पारिवारिक इतिहास, सामान्य खुशी, शिक्षा और छाती व फेफड़ों का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रश्न कुंडली में चतुर्थ भाव
जैसे जन्मकुंडली में, वैसे ही प्रश्न कुंडली का चतुर्थ भाव माता, वाहन, भूमि, घर से मिलने वाला सुख आदि का सूचक होता है।
प्रश्न कुंडली का चतुर्थ भाव और उसका स्वामी अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। यह भाव केंद्र भाव होने के कारण विशेष ध्यान देने योग्य होता है। जब कोई जातक चतुर्थ भाव से जुड़े प्रश्न करता है, तब इसका लग्न और लग्नेश के साथ संबंध भी विशेष महत्व रखता है।
प्रश्न मार्ग जो प्रश्न ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, के अनुसार यदि भूमि पट्टे (लीज़) से संबंधित प्रश्न पूछा जाए तो लग्न प्रश्नकर्ता को दर्शाता है, सप्तम भाव पट्टेदार को, दशम भाव उत्पादन को, जबकि चतुर्थ भाव अंतिम लाभ का प्रतिनिधित्व करता है। इससे स्पष्ट होता है कि ऐसे प्रश्नों में सभी केंद्र भाव प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यदि केंद्र भाव और उनके स्वामी शुभ ग्रहों से संबंधित हों तो लाभ मिलता है। इसके विपरीत, यदि वे अशुभ प्रभाव में हों तो प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
यदि चतुर्थ भाव में पाप ग्रह बैठे हों, तो प्रश्न कुंडली में चतुर्थ भाव से जुड़े सभी फल प्रतिकूल और अशुभ माने जाते हैं।
चतुर्थ भाव में शुभ और अशुभ ग्रहों के प्रभाव
यदि चतुर्थ भाव में कोई शुभ ग्रह स्थित हो, तो यह माता का उत्तम स्वास्थ्य, वाहन, भूमि, पशुधन, पलंग-बिस्तर आदि की प्राप्ति और सामान्य रूप से समृद्धि तथा प्रश्नकर्ता का स्वास्थ्य दर्शाता है। यदि लग्नेश का चंद्रमा के साथ चतुर्थ भाव में मुथ्थशिला योग हो या लग्नेश लग्न में स्थित हो, तो प्रश्नकर्ता को भूमि की प्राप्ति होती है।
यदि चतुर्थ भाव में कोई पाप ग्रह हो, तो यह माता और मातृ संबंधियों को कष्ट, पशुधन, बिस्तर, भूमि और वाहन का नुकसान, हृदय रोग, मानसिक अशांति तथा अशुद्ध जल से होने वाली असुविधाएं दर्शाता है।
जन्म कुंडली में 12 भावों के स्वामी का चौथे भाव पर प्रभाव
पहले भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक सभी प्रकार का सुख पाता है। घर-परिवार के मामलों में रुचि रखता है। सुरक्षित जीवन और मां के साथ मजबूत संबंध होते हैं।
दूसरे भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक की संपत्ति से जुड़े वित्तीय मामलों में सक्रियता होती है। माता और सगे संबंधियों से अत्यधिक आनंद प्राप्त करता है। यदि निर्बली हो तो विपरित परिणाम मिल सकते हैं।
तीसरे भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक अपने प्रयासों से ऐश्वर्य-आराम और धन-संपत्ति को प्राप्त करने वाला होता है।
चौथे भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो सुख, विलासिता और आराम का जीवन होता है। लेकिन यहां मंगल आदि ग्रह हो तो जातक को विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
पांचवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त एक तीक्ष्ण बुद्धिवाला होता है। वह कई मकानों एवं भूमि का स्वामी होता है। कभी-कभी जातक को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां या प्रेम संबंधों में बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
छठे भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो यह शुभ नहीं माना गया है। ऐसे जातक के घर में विवाद, बीमारियां या ऋण लेने-देने की स्थिति आ सकती है।
सातवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक पर जीवनसाथी के घर-परिवार का प्रभाव होता है। सामान्यतः ऐसा जातक आकर्षक और सुंदर व्यक्तित्व का स्वामी होता है।
आठवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो यह स्थिति शुभ नहीं मानी गई है। सामान्य तौर पर ऐसे जातकों को माता और सगे संबंधियों से कोई सुख प्राप्त नहीं होता है। ससुराल के घर से संबंध या घर में पैतृक संपत्ति/विरासत का प्रबंधन का योग बन सकता है।
नौवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो यह संबंध राजयोग का निर्माण करता है। ऐसे जातकों को पैतृक संपत्ति मिलने की संभावना होती है।
दसवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक की माता दीर्घायु होती है। वह शासन में उच्च पद प्राप्त करता है और समाज में प्रतिष्ठा मिलती है। ऐसा जातक व्यापार से अत्यधिक धन अर्जित कर सकता है।
एकादश भाव चतुर्थ भाव से अष्टम भाव है। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी बली होकर एकादश भाव में स्थित हो तो यह शुभ होता है। ऐसा जातक सामाजिक जीवन और मित्रमंडली के केंद्र में होता है।
बारहवें भाव का स्वामी चौथे भाव में हो तो जातक पर विदेशी संबंधों या अंतरराष्ट्रीय संपर्क का प्रभाव हो सकता है।
जन्मकुंडली के चौथे घर में ग्रहों का असर
सूर्य: चौथे भाव में सूर्य घुमक्कड़ प्रवृत्ति, मानसिक अशांति और गूढ़ विषयों का जानकार और दार्शनिक बनाता है। व्यक्ति अपने परिवार और निजी जीवन की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है और आराम का आनंद लेता है। यदि सूर्य कमजोर या पीड़ित हो, तो जीवन में असंतोष और मानसिक बेचैनी का अनुभव हो सकता है।
चंद्रमा: चौथे भाव में चंद्रमा आपको भावनात्मक रूप से स्थिर बनाता है और आपके दिल व अंतर्ज्ञान को संवेदनशील करता है। यह सुरक्षा और घरेलू आराम की भावना को महत्व देता है। आपके मूल स्थान, परिवार, विरासत और परंपराओं के साथ संबंध मजबूत रहते हैं, और यह बचपन में मातृ स्नेह की गहरी उपस्थिति को भी दर्शाता है।
मंगल: चौथे भाव में मंगल की स्थिति भावनात्मक बेचैनी और घरेलू तनाव ला सकती है। आक्रामकता और अहंकार के कारण घर में सौहार्द प्रभावित हो सकता है। कभी-कभी मूल स्थान छोड़ने की संभावना रहती है, लेकिन परिवार को साथ रखने की तीव्र इच्छा हमेशा बनी रहती है।
बुध: बुध घर और परिवार से जुड़े दिमाग और सोच को प्रभावित करता है। यदि घर में सद्भाव और समन्वय है, तो सोच सकारात्मक और दूरदर्शी रहती है। यदि नहीं, तो दृष्टिकोण नकारात्मक और बेचैन हो सकता है।
बृहस्पति: बृहस्पति की उपस्थिति से विश्वास, दर्शन और भाग्य का असर घर-परिवार में दिखाई देता है। यह विरासत या वित्तीय सहायता के माध्यम से घरेलू समृद्धि लाता है। माता-पिता के साथ संबंध सौहार्दपूर्ण और मजबूत रहते हैं।
शुक्र: शुक्र के होने से घरेलू जीवन खुशहाल रहता है। घर में सद्भाव, प्रेम और करुणा बनी रहती है। साथ ही रचनात्मकता और कलात्मकता घर के वातावरण को सुंदर और शांतिपूर्ण बनाती है। परिवार और घरेलू मामलों से वित्तीय लाभ की संभावना भी रहती है।
शनि: शनि चौथे भाव में होने से जीवन में पारंपरिक और रूढ़िवादी दृष्टिकोण दिखता है। आप स्थिरता पसंद करते हैं और परिवर्तन से बचते हैं। परिवार में कई जिम्मेदारियां और समस्याएं हो सकती हैं। माता-पिता या बुजुर्गों की देखभाल करनी पड़ सकती है।
राहु: राहु घर और संपत्ति के मामलों में तीव्र इच्छा और महत्वाकांक्षा लाता है। आप जमीन, वाहन और शिक्षा में रुचि रखते हैं। यदि राहु पीड़ित हो, तो मातृभूमि और परंपराओं से संबंध कमजोर हो सकते हैं और भावनात्मक असंतुलन हो सकता है।
केतु: केतु चौथे भाव में होने पर विदेश की ओर जाने की संभावना होती है। जीवन में घरेलू सुख और मानसिक शांति की कमी महसूस हो सकती है।
चतुर्थ भाव और भावेश से बनने वाले प्रमुख योग
यदि लग्न भाव का स्वामी और चतुर्थ भाव का स्वामी एक-दूसरे के मित्र हो तो जातक के अपनी माता से मधुर संबंध होते हैं।
यदि कुंडली में लग्न भाव का स्वामी और चौथे भाव का स्वामी एक दूसरे से 6-8 की स्थिति में न हो तो जातक को अपनी मां का अत्यधिक स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
लग्न और सप्तम भाव में स्थित चौथे भाव का स्वामी जातक को बिना किसी परेशानी के घर देते हैं।
चौथे भाव में स्थित चंद्रमा और शुक्र बहुमंजिला घर देते हैं।
चौथे और दशवें भाव के स्वामी मित्र ग्रह होकर बली हो तो अत्यधिक भूसंपत्ति देते हैं।
अष्टम भाव में स्थित नीच या पीड़ित चौथे भाव का स्वामी जातक को भूमि और घर से वंचित करता है।
ज्योतिष का यह मूल सिद्धांत है कि किसी व्यक्ति की कुंडली में योगों के फल का सही अनुमान केवल भाव देखकर नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए वर्गकुंडली, ग्रहों का अंश, ग्रहों की शक्ति, उनकी स्थिति, दृष्टि और युति जैसी सभी शास्त्रीय जानकारियों का ध्यान रखना ज़रूरी है। यही संपूर्ण अध्ययन हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का सटीक और सही अंदाज़ा लगाने में मदद करता है।
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