News India Live, Digital Desk: राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है, और इसकी वजह बना है एक पोस्टर। मौका है बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का, लेकिन इस उपचुनाव से ज्यादा चर्चा बीजेपी द्वारा जारी स्टार प्रचारकों की उस लिस्ट की हो रही है, जिससे पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की सबसे कद्दावर नेताओं में से एक वसुंधरा राजे का नाम ही गायब है।यह बात इसलिए और भी ज्यादा हैरान करने वाली है क्योंकि यह इलाका हमेशा से वसुंधरा राजे और उनके बेटे दुष्यंत सिंह का गढ़ माना जाता रहा है। अंता विधानसभा, दुष्यंत सिंह के झालावाड़-बारां लोकसभा क्षेत्र का ही हिस्सा है।क्या कहता है यह पोस्टर?बीजेपी ने अंता उपचुनाव के लिए 30 स्टार प्रचारकों की एक लिस्ट जारी की है। इस लिस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ-साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, डिप्टी सीएम दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा के भी नाम शामिल हैं।लिस्ट में गजेंद्र सिंह शेखावत और किरोड़ी लाल मीणा जैसे प्रदेश के दूसरे बड़े नेताओं को भी जगह मिली है, लेकिन जिसका नाम सबकी आंखें ढूंढ रही थीं, वही नदारद है - वसुंधरा राजे सिंधिया।क्यों खड़े हो रहे हैं सवाल?राजस्थान की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करना कोई छोटी बात नहीं है। इस फैसले के कई मतलब निकाले जा रहे हैं:क्या यह साइडलाइन करने की कोशिश है? पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ही यह चर्चा चल रही है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व अब राजस्थान में एक नई लीडरशिप को आगे बढ़ा रहा है और वसुंधरा राजे को धीरे-धीरे साइडलाइन किया जा रहा है।बेटे की सीट, मां ही प्रचारक नहीं: यह सबसे बड़ा सवाल है। दुष्यंत सिंह इसी इलाके से सांसद हैं और यहां के स्थानीय समीकरणों पर वसुंधरा परिवार की मजबूत पकड़ मानी जाती है। ऐसे में, अपने ही बेटे के क्षेत्र में हो रहे चुनाव में उन्हें स्टार प्रचारक न बनाना किसी को भी हजम नहीं हो रहा।क्या गुटबाजी अब भी जारी है? यह फैसला इस बात की ओर भी इशारा कर रहा है कि राजस्थान बीजेपी में भले ही ऊपर से सब कुछ शांत दिख रहा हो, लेकिन अंदरखाने गुटबाजी अब भी अपने चरम पर है।यह पोस्टर सिर्फ एक कागज का टुकड़ा नहीं है, बल्कि यह राजस्थान बीजेपी की आने वाली राजनीति की एक तस्वीर पेश कर रहा है। अब देखना यह है कि क्या महारानी इस 'अपमान' पर चुप रहती हैं, या यह चुप्पी किसी नए राजनीतिक तूफान का संकेत है।
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