वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ कई याचिकाएं दायर की गई हैं और सुप्रीम कोर्ट में उन पर सुनवाई चल रही है। विरोधी सरकार पर धार्मिक स्वतंत्रता छीनने का आरोप लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि वक्फ इस्लाम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। केंद्र सरकार ने आज अदालत में दलील देते हुए दावा किया कि वक्फ इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है, बल्कि महज एक दान है। वक्फ बोर्ड केवल धर्मनिरपेक्ष कार्य करता है। यह दावा किया जाता है कि मंदिर पूरी तरह धार्मिक हैं और उनका प्रबंधन मुस्लिम व्यक्ति द्वारा भी किया जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ एक इस्लामी विचार है, लेकिन यह इस्लाम का मौलिक या अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इस्लाम में केवल दान की व्यवस्था है। जिस प्रकार ईसाई धर्म में दान, हिंदू धर्म में दान और सिख धर्म में सेवा की परंपरा है, उसी प्रकार वक्फ भी एक सेवा है।
मुस्लिम पक्ष द्वारा अपनी दलीलें पेश करने के बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि दीर्घकालिक धार्मिक उपयोग (वक्फ-दर-उपयोगकर्ता) के आधार पर भूमि को वक्फ घोषित करने का प्रावधान अब नए कानून में हटा दिया गया है। किसी को भी सरकारी जमीन पर स्थायी अधिकार नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि सरकार ऐसी भूमि को पुनः प्राप्त कर सकती है, भले ही उसे वक्फ घोषित कर दिया गया हो।
वक्फ संपत्ति पर सरकार का अधिकारयदि कोई संपत्ति सरकारी संपत्ति है और उसे वक्फ-बाय-यूजर के तहत घोषित किया गया है, तो सरकार को उसे वापस लेने का कानूनी अधिकार है। यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है. वक्फ से जुड़ी समस्याएं, जो 1923 से चली आ रही थीं, अब नए कानून से हल हो गई हैं। अब हर पक्ष की बात सुनी जा चुकी है। सरकार को 9.6 मिलियन सुझाव प्राप्त हुए थे। इस बीच, संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की 36 बैठकें आयोजित की गईं। इसलिए, कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय के विचारों का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?इस बीच, मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद द्वारा पारित कोई भी कानून तब तक संवैधानिक माना जाता है जब तक कि उस कानून के खिलाफ बहुत स्पष्ट सबूत पेश न किए जाएं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बहस की। इस पर मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि हर कानून की एक संवैधानिक सीमा होती है। इसलिए कहा गया कि इस कानून के खिलाफ बहुत मजबूत और स्पष्ट तर्क देना होगा।
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