इस्लामाबाद: कजाखस्तान, इजरायल को मान्यता देने वाले अब्राहम अकॉर्ड में शामिल हो गया है। यानि, कजाखस्तान ने इजरायल को मान्यता दे दी है। वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि जल्द ही अब्राहम अकॉर्ड का विस्तार होगा और इसमें सऊदी अरब शामिल हो सकता है। अब्राहम अकॉर्ड, यानि इजरायल को मान्यता देने वाला समझौता, जिसे डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में शुरू किया था। डोनाल्ड ट्रंप ने फॉक्स न्यूज को दिए गये इंटरव्यू में कहा है कि उन्हें अब्राहम समझौते के जल्द ही विस्तार की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि उन्हें अब्राहम समझौते के जल्द ही विस्तार की उम्मीद है और उम्मीद है कि सऊदी अरब उस समझौते में शामिल होगा, जिसने इजरायल और कुछ अरब देशों के बीच राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाया है।
फॉक्स बिजनेस नेटवर्क पर शुक्रवार को प्रसारित एक इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि सऊदी अरब भी इसमें शामिल होगा और मुझे उम्मीद है कि दूसरे देश भी इसमें शामिल होंगे। मुझे लगता है कि जब सऊदी अरब इसमें शामिल होगा, तो हर कोई इसमें शामिल होगा।" ट्रंप ने कहा कि बुधवार को ही उन देशों के साथ उनकी "कुछ बहुत अच्छी बातचीत" हुई, जिन्होंने समझौतों में शामिल होने की इच्छा जताई है। आपको बता दें कि कजाखस्तान ने अब्राहम समझौते में शामिल होते हुए इजरायल को मान्यता दे दी है।
क्या सऊदी और पाकिस्तान होंगे शामिल?
अगर गाजा में हमास और इजरायल के बीच लड़ाई शुरू नहीं होती तो सऊदी अरब काफी पहले ही इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लेता। लेकिन हमास के हमले और फिर इजरायल के पलटवार से चीजें तेजी से बदलती चली गईं। लेकिन अब जबकि गाजा युद्ध बंद हो चुका है तो डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से अब्राहम अकॉर्ड को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन सबसे हैरान करने वाली स्थिति पाकिस्तान को लेकर है, जहां इजरायल और भारत के नाम पर ही जहर उगला जाता है। पाकिस्तान में इजरायल के नाम पर खून खराबा हो जाता है और पिछले महीने भी, पाकिस्तान की सेना ने सैकड़ों तहरीक-ए-लब्बैक के कार्यकर्ताओं को मार डाला, क्योंकि वो इजरायल-हमास युद्धविराम समझौते का विरोध कर रहे थे।
अब्राहम समझौते की शुरुआत 2020 में डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में हुई थी, जब संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए इजरायल को मान्यता दी थी। बाद में मोरक्को और सूडान भी इस प्रक्रिया में शामिल हो गये। अब्राहम समझौते का मकसद अरब देशों और इजरायल के बीच सामान्य राजनयिक और आर्थिक संबंधों की बहाली है, जो दशकों से फिलिस्तीन संघर्ष की वजह से ठप पड़े थे। ट्रंप का मानना है कि अगर सऊदी अरब, इजरायल के साथ समझौता करता है, तो पूरा अरब जगत उसके बाद चल पड़ेगा। क्योंकि सऊदी अरब, जो इस्लाम का जन्मस्थान और अरब दुनिया का सबसे प्रभावशाली देश है, वो अब तक फिलिस्तीन के समर्थन में रहा है।
क्या पाकिस्तान देगा इजरायल को मान्यता?
पाकिस्तान के पासपोर्ट पर 'इजरायल के लिए मान्य नहीं है' लिखा होता है। लेकिन डॉलर के लिए पाकिस्तान कुछ भी कर सकता है, जैसे वो गाजा में हमास से लड़ने के लिए 20 हजार सैनिकों को भेजने पर विचार कर रहा है। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक जून की शुरुआत में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने अब्राहम समझौते में पाकिस्तान के शामिल होने की संभावना से इनकार करते हुए कहा था, कि इस तरह के कदम का मतलब होगा कि वह फिलिस्तीनी संघर्ष के द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए अपने लंबे समय से चले आ रहे समर्थन को त्याग देगा और इजरायल को मान्यता देगा।
इशाक डार ने कहा था कि "जब तक फिलीस्तीनी संघर्ष के द्वि-राष्ट्र समाधान को स्वीकार नहीं किया जाता, हम इजरायल को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं हैं। फिलीस्तीनी मुद्दे पर हमारी घोषित नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।" लेकिन पाकिस्तानी नेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है और इसमे कोई शक नहीं होना चाहिए कि जब सऊदी अरब इजरायल को मान्यता दे, तो लाइन में पाकिस्तान भी लग जाए। क्योंकि इजराय से समझौते का मतलब अमेरिकी डॉलर मिलना होगा।
फॉक्स बिजनेस नेटवर्क पर शुक्रवार को प्रसारित एक इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि सऊदी अरब भी इसमें शामिल होगा और मुझे उम्मीद है कि दूसरे देश भी इसमें शामिल होंगे। मुझे लगता है कि जब सऊदी अरब इसमें शामिल होगा, तो हर कोई इसमें शामिल होगा।" ट्रंप ने कहा कि बुधवार को ही उन देशों के साथ उनकी "कुछ बहुत अच्छी बातचीत" हुई, जिन्होंने समझौतों में शामिल होने की इच्छा जताई है। आपको बता दें कि कजाखस्तान ने अब्राहम समझौते में शामिल होते हुए इजरायल को मान्यता दे दी है।
क्या सऊदी और पाकिस्तान होंगे शामिल?
अगर गाजा में हमास और इजरायल के बीच लड़ाई शुरू नहीं होती तो सऊदी अरब काफी पहले ही इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित कर लेता। लेकिन हमास के हमले और फिर इजरायल के पलटवार से चीजें तेजी से बदलती चली गईं। लेकिन अब जबकि गाजा युद्ध बंद हो चुका है तो डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से अब्राहम अकॉर्ड को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन सबसे हैरान करने वाली स्थिति पाकिस्तान को लेकर है, जहां इजरायल और भारत के नाम पर ही जहर उगला जाता है। पाकिस्तान में इजरायल के नाम पर खून खराबा हो जाता है और पिछले महीने भी, पाकिस्तान की सेना ने सैकड़ों तहरीक-ए-लब्बैक के कार्यकर्ताओं को मार डाला, क्योंकि वो इजरायल-हमास युद्धविराम समझौते का विरोध कर रहे थे।
अब्राहम समझौते की शुरुआत 2020 में डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में हुई थी, जब संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए इजरायल को मान्यता दी थी। बाद में मोरक्को और सूडान भी इस प्रक्रिया में शामिल हो गये। अब्राहम समझौते का मकसद अरब देशों और इजरायल के बीच सामान्य राजनयिक और आर्थिक संबंधों की बहाली है, जो दशकों से फिलिस्तीन संघर्ष की वजह से ठप पड़े थे। ट्रंप का मानना है कि अगर सऊदी अरब, इजरायल के साथ समझौता करता है, तो पूरा अरब जगत उसके बाद चल पड़ेगा। क्योंकि सऊदी अरब, जो इस्लाम का जन्मस्थान और अरब दुनिया का सबसे प्रभावशाली देश है, वो अब तक फिलिस्तीन के समर्थन में रहा है।
क्या पाकिस्तान देगा इजरायल को मान्यता?
पाकिस्तान के पासपोर्ट पर 'इजरायल के लिए मान्य नहीं है' लिखा होता है। लेकिन डॉलर के लिए पाकिस्तान कुछ भी कर सकता है, जैसे वो गाजा में हमास से लड़ने के लिए 20 हजार सैनिकों को भेजने पर विचार कर रहा है। डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक जून की शुरुआत में, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने अब्राहम समझौते में पाकिस्तान के शामिल होने की संभावना से इनकार करते हुए कहा था, कि इस तरह के कदम का मतलब होगा कि वह फिलिस्तीनी संघर्ष के द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए अपने लंबे समय से चले आ रहे समर्थन को त्याग देगा और इजरायल को मान्यता देगा।
इशाक डार ने कहा था कि "जब तक फिलीस्तीनी संघर्ष के द्वि-राष्ट्र समाधान को स्वीकार नहीं किया जाता, हम इजरायल को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं हैं। फिलीस्तीनी मुद्दे पर हमारी घोषित नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।" लेकिन पाकिस्तानी नेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है और इसमे कोई शक नहीं होना चाहिए कि जब सऊदी अरब इजरायल को मान्यता दे, तो लाइन में पाकिस्तान भी लग जाए। क्योंकि इजराय से समझौते का मतलब अमेरिकी डॉलर मिलना होगा।
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