आगामी 9 सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी गहमागहमी जारी है। विपक्षी खेमे I.N.D.I.A. ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को प्रत्याशी बनाया है। मौजूदा चुनाव को लेकर मंजरी चतुर्वेदी ने उनसे विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
आपने अपने प्रतिद्वंद्वी पर न सिर्फ गायब होने का आरोप लगाया बल्कि यह भी कहा कि वह मीडिया में बोलते नहीं हैं, इन आरोपों के जरिए आप क्या कहना चाहते हैं?
मैंने जो कहा, वह आरोप नहीं है। मेरे कहने का मतलब था कि अगर वह कुछ बोलते हैं तो एक चर्चा हो सकती है, एक संवाद हो सकता है। मैं अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में गायब होने की बात तो बोल ही नहीं सकता।
NDA के पास संख्या बल है। ऐसे में आप अपनी जीत को लेकर कितने आश्वस्त हैं? I.N.D.I.A. के समर्थन के अलावा वह कौन सी चीज है, जो आपको जीत के प्रति आश्वस्त करती है?
इस चुनाव में राज्यों के दल तो वोट करेंगे नहीं। इसमें वोट देने वाले सदन के सदस्य हैं। उन सभी सदस्यों को मैं अपने समर्थन के बाबत चिट्ठी लिख चुका हूं। दूसरा, इसमें व्हिप जारी नहीं होता। तीसरा, इसमें चुनाव सीक्रेट बैलेट से होता है। संविधान में बाकायदा बताया गया है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होना चाहिए। तभी इसके निर्माताओं का मानना था कि सदस्य सोच-समझ कर अपना मतदान करें, अपनी अंतरात्मा की आवाज पर।
विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि देश में संविधान और संवैधानिक संस्थाओं पर लगातार हमला हो रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं? आपको क्या संवैधानिक चुनौती नजर आती है?
मैं इतना ही कह सकता हूं कि विपक्षी नेता और विपक्षी दलों की अपनी अपनी सोच और नैरेटिव है। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि देश में संवैधानिक संस्थाएं पूरी तरह से खत्म हो गई हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा जरूर लगता है कि हमारी संस्थाओं को जिस तरह से संविधान के अनुसार काम करना चाहिए, वो नहीं हो रहा है। मुझे उनके काम में कमी लगती है।
आप खुद जुडिशरी में रहे हैं, पिछले कुछ सालों में देश की जुडिशरी पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ऐसा क्या होना चाहिए कि जनता का एक बार फिर से जुडिशरी में भरोसा बने?
मैं नहीं समझता कि जुडिशरी को लेकर आम आदमी का भरोसा टूटा है। एक इवॉल्विंग सिचुएशन होती है, लोगों की अपेक्षा लगातार बढ़ती है। अगर जुडिशरी का रेस्पॉन्स, नोट, कमेंट, लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होता तो कभी लग सकता है कि भरोसा डगमगा रहा है। लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि जुडिशरी काम नहीं कर रही, या काम नहीं करती। सवालों की बात पर मैं कहना चाहूंगा कि संविधान में ऐसा कोई विभाग या अंग नहीं है, जिस पर आप सवाल नहीं उठा सकते। सवाल करने का अधिकार संविधान ने दिया है। हर कोई सवाल उठा सकता है और उठाना भी चाहिए, क्योंकि कोई व्यवस्था ऐसी नहीं बनाई गई, जो खुद के लिए काम करे। व्यवस्थाएं इस तरह से बनाई गईं कि सब मिलकर नागरिकों के लिए काम करें। इसलिए जब लोग कोई कमी महसूस करते हैं तो सवाल उठाते हैं। इसमें गलत बात क्या है? लेकिन साथ ही मैं यह भी मानता हूं कि जो संवैधानिक पद पर बैठे हैं, उनके खिलाफ व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाने चाहिए।
पिछले दिनों आपने कहा कि उपराष्ट्रपति का यह चुनाव भारत के हालिया इतिहास में सभी चुनावों से अलग होगा। आपका आशय?
मेरा कहना है कि एक उम्मीदवार का दूसरे उम्मीदवार पर कुछ अनुचित बातें करना, व्याख्यान करना ठीक नहीं रहेगा। आज देश में हालत यह है कि लोग सार्वजनिक तौर पर रोज कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं। राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के बारे में इन पदों के चुनावों के दौरान कम से कम वैसी भाषा नहीं होनी चाहिए। इसलिए मैंने देश के लोगों के सामने एक वादा किया था कि चुनाव के दौरान भाषा को पूरी तरह से शालीन रखूंगा। मैं सोच-समझकर बोलता हूं। किसी पर आरोप नहीं लगाता, ना किसी को हर्ट करता हूं। मैं अपनी बात पर कायम हूं। मैंने आज तक ऐसा नहीं किया और आइंदा भी नहीं करूंगा।
आपने कहा कि आप सभी दलों से संपर्क साध रहे हैं, तो क्या आप NDA के घटक दलों से भी समर्थन मांगेंगे? खासकर, आपकी मातृभाषा बोलने वाले दोनों राज्य तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के क्षेत्रीय दलों जैसे TDP, YSRCP और पवन कल्याण की पार्टी से?
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जहां मैं पैदा हुआ, वहां सभी से मेरे अच्छे रिश्ते हैं और सब लोगों को जानता हूं, वे मुझे जानते हैं। मेरा मानना है कि यहां बात राज्यों की नहीं, उपराष्ट्रपति पद की है। उपराष्ट्रपति देश का होता है तो देश के लिए सबसे समर्थन मांगूंगा, NDA के दलों से भी मांग रहा हूं। मैंने सबको चिट्ठी लिखी है। मेरा मानना है कि मैं किसी राजनीतिक दल का आदमी नहीं हूं और ना ही मेरी इच्छा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ने की है।
अगर आप उपराष्ट्रपति बनते हैं तो आपकी प्राथमिकता क्या रहेगी?
राज्यसभा को ठीक तरीके से चलाने की, सभी दलों को बराबरी से मौका देने की कोशिश रहेगी। सभी को बोलने का मौका देना, हाउस ऑर्डर में चलाने की कोशिश करना और संविधान की रक्षा करना ही मेरी प्राथमिकता होगी।
आपने अपने प्रतिद्वंद्वी पर न सिर्फ गायब होने का आरोप लगाया बल्कि यह भी कहा कि वह मीडिया में बोलते नहीं हैं, इन आरोपों के जरिए आप क्या कहना चाहते हैं?
मैंने जो कहा, वह आरोप नहीं है। मेरे कहने का मतलब था कि अगर वह कुछ बोलते हैं तो एक चर्चा हो सकती है, एक संवाद हो सकता है। मैं अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में गायब होने की बात तो बोल ही नहीं सकता।
NDA के पास संख्या बल है। ऐसे में आप अपनी जीत को लेकर कितने आश्वस्त हैं? I.N.D.I.A. के समर्थन के अलावा वह कौन सी चीज है, जो आपको जीत के प्रति आश्वस्त करती है?
इस चुनाव में राज्यों के दल तो वोट करेंगे नहीं। इसमें वोट देने वाले सदन के सदस्य हैं। उन सभी सदस्यों को मैं अपने समर्थन के बाबत चिट्ठी लिख चुका हूं। दूसरा, इसमें व्हिप जारी नहीं होता। तीसरा, इसमें चुनाव सीक्रेट बैलेट से होता है। संविधान में बाकायदा बताया गया है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होना चाहिए। तभी इसके निर्माताओं का मानना था कि सदस्य सोच-समझ कर अपना मतदान करें, अपनी अंतरात्मा की आवाज पर।
विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि देश में संविधान और संवैधानिक संस्थाओं पर लगातार हमला हो रहा है। क्या आप इससे सहमत हैं? आपको क्या संवैधानिक चुनौती नजर आती है?
मैं इतना ही कह सकता हूं कि विपक्षी नेता और विपक्षी दलों की अपनी अपनी सोच और नैरेटिव है। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि देश में संवैधानिक संस्थाएं पूरी तरह से खत्म हो गई हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा जरूर लगता है कि हमारी संस्थाओं को जिस तरह से संविधान के अनुसार काम करना चाहिए, वो नहीं हो रहा है। मुझे उनके काम में कमी लगती है।
आप खुद जुडिशरी में रहे हैं, पिछले कुछ सालों में देश की जुडिशरी पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। ऐसा क्या होना चाहिए कि जनता का एक बार फिर से जुडिशरी में भरोसा बने?
मैं नहीं समझता कि जुडिशरी को लेकर आम आदमी का भरोसा टूटा है। एक इवॉल्विंग सिचुएशन होती है, लोगों की अपेक्षा लगातार बढ़ती है। अगर जुडिशरी का रेस्पॉन्स, नोट, कमेंट, लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होता तो कभी लग सकता है कि भरोसा डगमगा रहा है। लेकिन यह कहना सही नहीं होगा कि जुडिशरी काम नहीं कर रही, या काम नहीं करती। सवालों की बात पर मैं कहना चाहूंगा कि संविधान में ऐसा कोई विभाग या अंग नहीं है, जिस पर आप सवाल नहीं उठा सकते। सवाल करने का अधिकार संविधान ने दिया है। हर कोई सवाल उठा सकता है और उठाना भी चाहिए, क्योंकि कोई व्यवस्था ऐसी नहीं बनाई गई, जो खुद के लिए काम करे। व्यवस्थाएं इस तरह से बनाई गईं कि सब मिलकर नागरिकों के लिए काम करें। इसलिए जब लोग कोई कमी महसूस करते हैं तो सवाल उठाते हैं। इसमें गलत बात क्या है? लेकिन साथ ही मैं यह भी मानता हूं कि जो संवैधानिक पद पर बैठे हैं, उनके खिलाफ व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाने चाहिए।
पिछले दिनों आपने कहा कि उपराष्ट्रपति का यह चुनाव भारत के हालिया इतिहास में सभी चुनावों से अलग होगा। आपका आशय?
मेरा कहना है कि एक उम्मीदवार का दूसरे उम्मीदवार पर कुछ अनुचित बातें करना, व्याख्यान करना ठीक नहीं रहेगा। आज देश में हालत यह है कि लोग सार्वजनिक तौर पर रोज कुछ ना कुछ बोलते रहते हैं। राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के बारे में इन पदों के चुनावों के दौरान कम से कम वैसी भाषा नहीं होनी चाहिए। इसलिए मैंने देश के लोगों के सामने एक वादा किया था कि चुनाव के दौरान भाषा को पूरी तरह से शालीन रखूंगा। मैं सोच-समझकर बोलता हूं। किसी पर आरोप नहीं लगाता, ना किसी को हर्ट करता हूं। मैं अपनी बात पर कायम हूं। मैंने आज तक ऐसा नहीं किया और आइंदा भी नहीं करूंगा।
आपने कहा कि आप सभी दलों से संपर्क साध रहे हैं, तो क्या आप NDA के घटक दलों से भी समर्थन मांगेंगे? खासकर, आपकी मातृभाषा बोलने वाले दोनों राज्य तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के क्षेत्रीय दलों जैसे TDP, YSRCP और पवन कल्याण की पार्टी से?
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जहां मैं पैदा हुआ, वहां सभी से मेरे अच्छे रिश्ते हैं और सब लोगों को जानता हूं, वे मुझे जानते हैं। मेरा मानना है कि यहां बात राज्यों की नहीं, उपराष्ट्रपति पद की है। उपराष्ट्रपति देश का होता है तो देश के लिए सबसे समर्थन मांगूंगा, NDA के दलों से भी मांग रहा हूं। मैंने सबको चिट्ठी लिखी है। मेरा मानना है कि मैं किसी राजनीतिक दल का आदमी नहीं हूं और ना ही मेरी इच्छा किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ने की है।
अगर आप उपराष्ट्रपति बनते हैं तो आपकी प्राथमिकता क्या रहेगी?
राज्यसभा को ठीक तरीके से चलाने की, सभी दलों को बराबरी से मौका देने की कोशिश रहेगी। सभी को बोलने का मौका देना, हाउस ऑर्डर में चलाने की कोशिश करना और संविधान की रक्षा करना ही मेरी प्राथमिकता होगी।
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