नई दिल्ली: अगर आपकी उंगली गैंग्रीन से ग्रस्त हो जाए, तो आप क्या करते हैं? क्या आप पूरे हाथ और फिर पूरे शरीर को गैंग्रीन से भर देते हैं, या उंगली काट देते हैं? जो चीज पूरे देश और उसके लोगों में भ्रष्टाचार लाती है, उसे गेहूं के खेत में उगने वाले खरपतवार की तरह उखाड़ फेंकना चाहिए। यह कहना था ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी का, जो उन्होंने जानी-मानी पत्रकार ओरियाना फलासी के साथ एक इंटरव्यू में कही थी। 7 अक्टूबर, 1979 के दिन अमेरिका के जाने-माने अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में यह पूरा इंटरव्यू छपा था। फलासी ने खुमैनी के सामने बुर्का निकालकर फेंक दिया, जो दुनिया में चर्चा का विषय बन गया। ट्यूजडे ट्रीविया में जानते हैं इंटरव्यू का बाकी का दिलचस्प हिस्सा। इसके अलावा, हाल ही में एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें खामेनेई शासन को पाखंड बताया जा रहा है। इस बीच ईरान के मौजूदा सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ परमाणु वार्ता प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। खामेनेई ने इस प्रस्ताव को थोपना और धमकाना बताया है।
ईरान के खामेनेई शासन का वीडियो पर लोग भड़के
ईरान के मौजूदा सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई शासन के खिलाफ एक शादी का वीडियो नए आक्रोश का केंद्र बना हुआ है। ऑनलाइन वायरल हो रहे इस वीडियो में सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के एक वरिष्ठ सहयोगी की बेटी को कम गले वाली बिना आस्तीन की सफेद शादी की पोशाक पहने दिखाया गया है। महिला की पहचान फतेमेह के रूप में हुई है और उसके पिता खामेनेई के वरिष्ठ सहयोगी अली शमखानी हैं। वह ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व सचिव थे। वीडियो में, उन्हें अपनी बेटी को तेहरान के आलीशान एस्पिनास पैलेस होटल में ले जाते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो ने पूरे ईरान में आक्रोश फैला दिया है क्योंकि कई लोग इसे शासन का घोर पाखंड बता रहे हैं जिसने ईरानी महिलाओं को सख्त हिजाब कानूनों का पालन करने के लिए मजबूर किया है।
वेश्या, बेवफा औरत को क्यों मारी जा रही गोली
फलासी: इमाम आपके राज में 500 लोगों को फांसी दी जा चुकी है। इसमें ऐसे भी लोग थे, जिनका शासन से कोई लेना-देना नहीं था। वे लोग जिन्हें आज भी व्यभिचार, वेश्यावृत्ति या समलैंगिकता के लिए गोली मारी जा रही है। क्या किसी बेचारी वेश्या, अपने पति से बेवफा औरत या किसी और मर्द से प्यार करने वाले मर्द को गोली मारना सही है?
समाज को शुद्ध करना जरूरी, वर्ना फैलेगी बुराई
खुमैनी: मैं जानता हूं कि ऐसे समाज हैं जहां महिलाओं को अपने पति से इतर पुरुषों की इच्छा पूरी करने के लिए खुद को समर्पित करने की इजाजत है और जहां पुरुषों को दूसरे पुरुषों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए खुद को समर्पित करने की इजाजत है। लेकिन हम जिस समाज का निर्माण करना चाहते हैं, वह ऐसी चीजों की इजाजत नहीं देता। इस्लाम में हम समाज को शुद्ध करने की नीति लागू करना चाहते हैं और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें उन लोगों को सजा देनी चाहिए जो हमारे युवाओं में बुराई फैलाते हैं। क्या आप भी ऐसा ही नहीं करते? जब चोर चोर होता है, तो क्या आप उसे जेल में नहीं डालते? कई देशों में क्या आप हत्यारों को भी फांसी नहीं देते? क्या आप इस व्यवस्था का इस्तेमाल इसलिए नहीं करते क्योंकि अगर वे आजाद और जिंदा रहे, तो वे दूसरों को संक्रमित करेंगे और फैलाएंगे।
समलैंगिकता के आरोप में फांसी क्यों
फलासी: इमाम एक हत्यारे और अत्याचारी की तुलना एक ऐसे नागरिक से कैसे की जा सकती है जो अपनी यौन स्वतंत्रता का प्रयोग करता है? कल जिस लड़के को समलैंगिकता के आरोप में गोली मारी गई, उसका उदाहरण लीजिए। उस गर्भवती 18 वर्षीय लड़की का उदाहरण लीजिए, जिसे कुछ हफ्ते पहले बेशर में व्यभिचार के आरोप में गोली मार दी गई थी। सभी ईरानी अखबारों ने यह खबर दी और टेलीविजन पर एक बहस हुई क्योंकि उसके प्रेमी को केवल सौ कोड़े मारे गए थे।
इस्लाम में ये बातें नहीं होती हैं
खुमैनी: गर्भवती? झूठ, झूठ। महिलाओं के स्तन काटने जैसे झूठ। इस्लाम में ऐसी बातें नहीं होतीं। हम इस्लाम में गर्भवती महिलाओं को गोली नहीं मारते। हंमें भ्रष्टाचार को मिटाना होगा। अगर यह सच है, तो इसका मतलब है कि उसे वह मिला जिसकी वह हकदार थी। मुझे विवरण के बारे में क्या पता? उस महिला ने जरूर कुछ ज्यादा गंभीर किया होगा। उस अदालत से पूछो जिसने उसे सजा सुनाई। ये बातें करना बंद करो। मैं थक गया हू। ये कोई जरूरी मामले नहीं हैं। सऊदी अरब, मिस्र और एशिया के कुछ मुल्कों में इस्लाम के अनुसार ही शासन चलता है। ऐसे में इस्लामी शासन को पाक बनाए रखना जरूरी है।
आप बुर्के में रहने के लिए मजबूर क्यों करते हैं फलासी: आप महिलाओं को हिजाब और बुर्के में रहने के लिए मजबूर करते हैं। आप और आपकी मोराल पुलिस महिलाओं पर जुल्म ढाती है। क्यों?
खुमैनी: जिन महिलाओं ने क्रांति में योगदान दिया, वे इस्लामी पोशाक वाली महिलाएं थीं और हैं, न कि आपकी तरह सजी-धजी औरतें, जो बिना कपड़ों के घूमती हैं, अपने पीछे पुरुषों को पूंछ में घसीटती हैं। जो चुलबुली लड़कियां मेकअप करके अपनी गर्दन, अपने बाल, अपनी आकृतियां दिखाती हुई सड़कों पर निकलती हैं, उन्होंने शाह के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने कभी कुछ अच्छा नहीं किया, न ही उन लोगों ने। वे उपयोगी होना नहीं जानतीं, न सामाजिक रूप से, न राजनीतिक रूप से, न ही पेशेवर रूप से। और ऐसा इसलिए है क्योंकि खुद को उघाड़कर वे पुरुषों का ध्यान भटकाती हैं और उन्हें परेशान करती हैं। फिर वे दूसरों का भी ध्यान भटकाती हैं और उन्हें परेशान करती हैं।
ईरान में इस्लामी क्रांति से पहले हिजाब की शर्त नहीं
ईरान में रजा शाह पहलवी के शासनकाल में ईरान का समाज खुला हुआ था। वह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर सकती थीं। महिलाओं को सड़कों पर पश्चिमी शैली के कपड़े पहनने की आजादी थी। वहीं, कहीं भी स्कर्ट, जींस या बूट में घूम-फिर सकती थीं। 1979 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद ईरान के नए सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने आदेश दिया कि सभी महिलाओं को हिजाब पहनना होगा। उनकी मोराल पुलिस ने महिलाओं से उनके स्कर्ट तक उतरवा लिए। इसके विरोध में उसी साल 8 मार्च को अंतरराराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी क्षेत्रों की हजारों महिलाएं कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए निकलीं।
1963 में महिलाओं को मिला था वोट देने का हक
साल 1963 में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला था। फारोखरू पारसा साल 1968 में शिक्षा मंत्री बनीं, जो इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं। महनाज अफखामी को साल 1976 में महिला मामलों की मंत्री नियुक्त किया गया था। क्रांति से पहले और बाद में कई महिलाओं को मंत्री या राजदूत नियुक्त किया गया था।
होंठों से रेजर ब्लेड से लिपिस्टिक हटाई गई
हिजाब के खिलाफ यह विरोध तब और बढ़ गया जब अयातुल्लाह खुमैनी ने यह कहा कि महिलाएं मामूली इस्लामी कपड़ों में ही अच्छी लगती हैं। 1981 में हिजाब अनिवार्य कर दिया गया और सौंदर्य प्रसाधनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यहां तक कि मोराल पुलिस सरेआम महिलाओं के होंठों से रेजर ब्लेड से लिपस्टिक हटाने में जुट गई। बाद में महिलाओं के जज और वकील बनने पर रोक लगा दी गई। शासन ने गर्भनिरोधक पर पाबंदी लगा दी और लड़कियों की शादी की उम्र 15 से घटाकर 9 कर दी।
खुमैनी ने महिलाओं को बुर्के और हिजाब में रखा
खुमैनी के आने के बाद महिलाओं की भूमिकाएं सीमित हो गईं। महिलाओं को बड़े परिवार पालने और घरेलू कामों को ही करने के लिए माना जाना लगा। महिलाओं को दाई का काम और शिक्षण तक ही सीमित रखा गया। 1980 के दशक में महिलाओं के अधिकारों के उदारीकरण की लड़ाई शुरू हुई। महिलाओं को तलाक का अधिकार मिला। उन्हें बुर्का और हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। खुमैनी के बाद आए अयातुल्लाह अली खामनेई भी उसी कट्टपपंथी परंपरा को आगे बढ़ाया।
ईरान के खामेनेई शासन का वीडियो पर लोग भड़के
ईरान के मौजूदा सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई शासन के खिलाफ एक शादी का वीडियो नए आक्रोश का केंद्र बना हुआ है। ऑनलाइन वायरल हो रहे इस वीडियो में सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के एक वरिष्ठ सहयोगी की बेटी को कम गले वाली बिना आस्तीन की सफेद शादी की पोशाक पहने दिखाया गया है। महिला की पहचान फतेमेह के रूप में हुई है और उसके पिता खामेनेई के वरिष्ठ सहयोगी अली शमखानी हैं। वह ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व सचिव थे। वीडियो में, उन्हें अपनी बेटी को तेहरान के आलीशान एस्पिनास पैलेस होटल में ले जाते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो ने पूरे ईरान में आक्रोश फैला दिया है क्योंकि कई लोग इसे शासन का घोर पाखंड बता रहे हैं जिसने ईरानी महिलाओं को सख्त हिजाब कानूनों का पालन करने के लिए मजबूर किया है।
The daughter of Ali Shamkhani one of the Islamic Republic’s top enforcers had a lavish wedding in a strapless dress. Meanwhile, women in Iran are beaten for showing their hair and young people can’t afford to marry. This video made millions of Iranian furious. Because they… https://t.co/MAb9hNgBnN pic.twitter.com/WoRgbpXQFA
— Masih Alinejad 🏳️ (@AlinejadMasih) October 19, 2025
वेश्या, बेवफा औरत को क्यों मारी जा रही गोली
फलासी: इमाम आपके राज में 500 लोगों को फांसी दी जा चुकी है। इसमें ऐसे भी लोग थे, जिनका शासन से कोई लेना-देना नहीं था। वे लोग जिन्हें आज भी व्यभिचार, वेश्यावृत्ति या समलैंगिकता के लिए गोली मारी जा रही है। क्या किसी बेचारी वेश्या, अपने पति से बेवफा औरत या किसी और मर्द से प्यार करने वाले मर्द को गोली मारना सही है?
समाज को शुद्ध करना जरूरी, वर्ना फैलेगी बुराई
खुमैनी: मैं जानता हूं कि ऐसे समाज हैं जहां महिलाओं को अपने पति से इतर पुरुषों की इच्छा पूरी करने के लिए खुद को समर्पित करने की इजाजत है और जहां पुरुषों को दूसरे पुरुषों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए खुद को समर्पित करने की इजाजत है। लेकिन हम जिस समाज का निर्माण करना चाहते हैं, वह ऐसी चीजों की इजाजत नहीं देता। इस्लाम में हम समाज को शुद्ध करने की नीति लागू करना चाहते हैं और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें उन लोगों को सजा देनी चाहिए जो हमारे युवाओं में बुराई फैलाते हैं। क्या आप भी ऐसा ही नहीं करते? जब चोर चोर होता है, तो क्या आप उसे जेल में नहीं डालते? कई देशों में क्या आप हत्यारों को भी फांसी नहीं देते? क्या आप इस व्यवस्था का इस्तेमाल इसलिए नहीं करते क्योंकि अगर वे आजाद और जिंदा रहे, तो वे दूसरों को संक्रमित करेंगे और फैलाएंगे।
समलैंगिकता के आरोप में फांसी क्यों
फलासी: इमाम एक हत्यारे और अत्याचारी की तुलना एक ऐसे नागरिक से कैसे की जा सकती है जो अपनी यौन स्वतंत्रता का प्रयोग करता है? कल जिस लड़के को समलैंगिकता के आरोप में गोली मारी गई, उसका उदाहरण लीजिए। उस गर्भवती 18 वर्षीय लड़की का उदाहरण लीजिए, जिसे कुछ हफ्ते पहले बेशर में व्यभिचार के आरोप में गोली मार दी गई थी। सभी ईरानी अखबारों ने यह खबर दी और टेलीविजन पर एक बहस हुई क्योंकि उसके प्रेमी को केवल सौ कोड़े मारे गए थे।
इस्लाम में ये बातें नहीं होती हैं
खुमैनी: गर्भवती? झूठ, झूठ। महिलाओं के स्तन काटने जैसे झूठ। इस्लाम में ऐसी बातें नहीं होतीं। हम इस्लाम में गर्भवती महिलाओं को गोली नहीं मारते। हंमें भ्रष्टाचार को मिटाना होगा। अगर यह सच है, तो इसका मतलब है कि उसे वह मिला जिसकी वह हकदार थी। मुझे विवरण के बारे में क्या पता? उस महिला ने जरूर कुछ ज्यादा गंभीर किया होगा। उस अदालत से पूछो जिसने उसे सजा सुनाई। ये बातें करना बंद करो। मैं थक गया हू। ये कोई जरूरी मामले नहीं हैं। सऊदी अरब, मिस्र और एशिया के कुछ मुल्कों में इस्लाम के अनुसार ही शासन चलता है। ऐसे में इस्लामी शासन को पाक बनाए रखना जरूरी है।
आप बुर्के में रहने के लिए मजबूर क्यों करते हैं फलासी: आप महिलाओं को हिजाब और बुर्के में रहने के लिए मजबूर करते हैं। आप और आपकी मोराल पुलिस महिलाओं पर जुल्म ढाती है। क्यों?
खुमैनी: जिन महिलाओं ने क्रांति में योगदान दिया, वे इस्लामी पोशाक वाली महिलाएं थीं और हैं, न कि आपकी तरह सजी-धजी औरतें, जो बिना कपड़ों के घूमती हैं, अपने पीछे पुरुषों को पूंछ में घसीटती हैं। जो चुलबुली लड़कियां मेकअप करके अपनी गर्दन, अपने बाल, अपनी आकृतियां दिखाती हुई सड़कों पर निकलती हैं, उन्होंने शाह के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी। उन्होंने कभी कुछ अच्छा नहीं किया, न ही उन लोगों ने। वे उपयोगी होना नहीं जानतीं, न सामाजिक रूप से, न राजनीतिक रूप से, न ही पेशेवर रूप से। और ऐसा इसलिए है क्योंकि खुद को उघाड़कर वे पुरुषों का ध्यान भटकाती हैं और उन्हें परेशान करती हैं। फिर वे दूसरों का भी ध्यान भटकाती हैं और उन्हें परेशान करती हैं।
ईरान में इस्लामी क्रांति से पहले हिजाब की शर्त नहीं
ईरान में रजा शाह पहलवी के शासनकाल में ईरान का समाज खुला हुआ था। वह यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर सकती थीं। महिलाओं को सड़कों पर पश्चिमी शैली के कपड़े पहनने की आजादी थी। वहीं, कहीं भी स्कर्ट, जींस या बूट में घूम-फिर सकती थीं। 1979 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद ईरान के नए सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने आदेश दिया कि सभी महिलाओं को हिजाब पहनना होगा। उनकी मोराल पुलिस ने महिलाओं से उनके स्कर्ट तक उतरवा लिए। इसके विरोध में उसी साल 8 मार्च को अंतरराराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी क्षेत्रों की हजारों महिलाएं कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए निकलीं।
1963 में महिलाओं को मिला था वोट देने का हक
साल 1963 में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला था। फारोखरू पारसा साल 1968 में शिक्षा मंत्री बनीं, जो इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला थीं। महनाज अफखामी को साल 1976 में महिला मामलों की मंत्री नियुक्त किया गया था। क्रांति से पहले और बाद में कई महिलाओं को मंत्री या राजदूत नियुक्त किया गया था।
होंठों से रेजर ब्लेड से लिपिस्टिक हटाई गई
हिजाब के खिलाफ यह विरोध तब और बढ़ गया जब अयातुल्लाह खुमैनी ने यह कहा कि महिलाएं मामूली इस्लामी कपड़ों में ही अच्छी लगती हैं। 1981 में हिजाब अनिवार्य कर दिया गया और सौंदर्य प्रसाधनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यहां तक कि मोराल पुलिस सरेआम महिलाओं के होंठों से रेजर ब्लेड से लिपस्टिक हटाने में जुट गई। बाद में महिलाओं के जज और वकील बनने पर रोक लगा दी गई। शासन ने गर्भनिरोधक पर पाबंदी लगा दी और लड़कियों की शादी की उम्र 15 से घटाकर 9 कर दी।
खुमैनी ने महिलाओं को बुर्के और हिजाब में रखा
खुमैनी के आने के बाद महिलाओं की भूमिकाएं सीमित हो गईं। महिलाओं को बड़े परिवार पालने और घरेलू कामों को ही करने के लिए माना जाना लगा। महिलाओं को दाई का काम और शिक्षण तक ही सीमित रखा गया। 1980 के दशक में महिलाओं के अधिकारों के उदारीकरण की लड़ाई शुरू हुई। महिलाओं को तलाक का अधिकार मिला। उन्हें बुर्का और हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। खुमैनी के बाद आए अयातुल्लाह अली खामनेई भी उसी कट्टपपंथी परंपरा को आगे बढ़ाया।
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