पटना: एक सुपरहिट फिल्म का बड़ा ही फेमस डायलॉग है, 'एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू।' वोट की राजनीति में एक-एक 'चुटकी' बड़ा ही मायने रखता है। पिछले 20 साल के बिहार का चुनावी ग्राफ देखें तो नीतीश कुमार की पार्टी को सिर्फ 2005 में सबसे ज्यादा वोट शेयर (करीब साढ़े 24 प्रतिशत) हासिल हुआ था। बीजेपी के साथ रहते हुए 2010 में नीतीश कुमार की सीटें जरूर बढ़ी, मगर वोट शेयर गिर चुका था। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार के लिए 'डिजास्टर' साबित हुआ। इसके बाद वो कभी भी, चाहे वो लोकसभा हो या फिर विधानसभा अकेले चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके। नीतीश कुमार पिछले 20 सालों में पार्टनर बदलकर भी अपनी पार्टी का वोट शेयर को नहीं बचा सके, करीब 9 फीसदी तक मत गंवा चुके हैं। सीटों की बात करें तो 20 साल पहले 88 विधायकों की पार्टी 43 पर आकर सिमट गई है। वोट शेयर और सीट में गिरावट के बावजूद 2020 में '0.03 प्रतिशत' का कांटा फंस गया और एक बार फिर नीतीश कुमार 'कुर्सी' पर काबिज हो गए।
'क्लेश' की जड़ में रही 1.88 प्रतिशतनीतीश कुमार ने 15 साल के लालू-राबड़ी राज का खात्मा 2005 में किया। बिहार की राजनीति में इन 15 सालों को एनडीए के नेता 'जगल राज' का नाम देते हैं। एनडीए को बंपर बहुमत मिला। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया। 24.46 प्रतिशत वोट और 88 सीटें जेडीयू को मिली। पांच साल में नीतीश कुमार का सफर 'सुशासन कुमार' तक पहुंच गया। 2010 में चुनाव की बारी आई तो 'सुशासन' के दम पर एनडीए ने एक बार फिर अपना परचम लहराया। 88 विधायकों वाले नीतीश कुमार अब 115 विधायकों वाले हो चुके थे। मगर, एक चीज ने नीतीश कुमार की नींद उड़ा दी, वो थी वोट शेयर। 2005 में 24.46 प्रतिशत वोट वाले नीतीश कुमार 2010 में 22.58 प्रतिशत वाले हो गए। मतलब, नीतीश की 1.88 फीसदी वोट शेयर गिर चुकी थी। नीतीश की 'क्लेश' की शुरुआत की जड़ में यही 1.88 प्रतिशत रही।
लालू के साथ भी गिरा नीतीश का 'ग्राफ'2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया। एनडीए से अलग हो गए। किसी तरह विधानसभा में सरकार बचा लिए। अकेले, मोदी लहर का मुकाबला करने को ठानी। मगर, जब रिजल्ट आया तो भ्रम टूट चुका था। करीब साढ़े 6 फीसदी वोट शेयर गिर गए और 20 सांसदों की पार्टी रही जेडीयू 2 पर आकर सिमट गई। फिर, नीतीश कुमार ने लालू यादव का दरवाजा खटखटाया। 10 साल से सत्ता से बेदखल लालू यादव ने दिल खोलकर 'छोटे भाई' का स्वागत किया। 2015 विधानसभा चुनाव में नया एलायंस बना, जिसका नाम दिया गया 'महागठबंधन'। रिजल्ट में 115 विधायकों वाली पार्टी जेडीयू 71 पर आकर अटक गई, वोट प्रतिशत भी 16 के आसपास ही रहा। साफ-साफ कहें तो 'अहम संतुष्टि' (Ego Satisfaction) के अलावा नीतीश कुमार को कुछ खास हासिल नहीं हुआ। न तो सीटें बढ़ी ना ही वोट शेयर।
20 साल में करीब 6 फीसदी फिसल गए नीतीश2019 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ लड़ा। दो सांसदों वाली पार्टी अब 16 तक पहुंच चुकी थी। वोट शेयर 16 से 22 पर आ चुका था। मगर, नीतीश कुमार का दिल नहीं भरा। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले उन्होंने पलटी मार दी और एनडीए के पाले में आ गए। जब फाइनल रिजल्ट आया तो 71 विधायकों वाली पार्टी 43 पर सिमट चुकी थी। 22 प्रतिशत वाला वोट शेयर 15 पर आ चुका था यानि करीब 7 फीसदी की गिरावट हो चुकी थी। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मार दी और एनडीए के पाले में आ गए। इस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी 16 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी और 12 पर जीत मिली। मगर, वोट शेयर के मामले में नीतीश कुमार लकी साबित नहीं हुए, करीब साढ़े 18 फीसदी वोट शेयर रहा। 2005 में नीतीश कुमार ने 24.46 प्रतिशत वोट शेयर से शुरुआत की थी, जो आठ चुनाव लड़ने के बाद 18.52 फीसदी पर टिकी है। मतलब, 5.94 प्रतिशत की गिरवाट है। अब, 2025 बिहार विधानसभा चुनाव पर सभी की नजरें टिकी है, इस बार नीतीश कुमार एनडीए की साइड से फाइट कर रहे हैं।
'0.03%' से फिसल गई थी तेजस्वी की कुर्सीदरअसल, इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में एक-एक वोट अहम हो जाते हैं। 1999 में अच्छी-खासी चल रही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। बिहार चुनाव 2020 की बात करें तो महज 0.03 फीसदी के अंतर से तेजस्वी पूरी की पूरी सत्ता हार गए। मुख्यमंत्री बनने का सपना महज 12 हजार 655 वोटों ने तोड़ दिया। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 1,57,01,226 वोट मिले थे। जबकि, महागठबंधन को 1,56,88,571 मत हासिल हुए। सीटों की बात करें तो एनडीए को 125 सीटें मिली, जो बहुमत से तीन ज्यादा थी। वहीं, महागठबंधन को 110 सीटें मिली। बाकी आठ सीटों को दूसरी पार्टियों ने जीता। यानी, कुर्सी की रेस को तेजस्वी हार चुके थे। आश्चर्य की बात ये रही कि 7,06,252 मतदाताओं ने NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) का बटन दबाया जो, मतदान के कुल प्रतिशत का 1.68 था। जबकि, तेजस्वी यादव सिर्फ और सिर्फ 0.03 प्रतिशत यानी 12,655 वोटों से सत्ता की लड़ाई हार गए थे। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर है, मगर नीतीश की पार्टी का वोट शेयर भी कम दिलचस्प नहीं रहने वाला।
'क्लेश' की जड़ में रही 1.88 प्रतिशतनीतीश कुमार ने 15 साल के लालू-राबड़ी राज का खात्मा 2005 में किया। बिहार की राजनीति में इन 15 सालों को एनडीए के नेता 'जगल राज' का नाम देते हैं। एनडीए को बंपर बहुमत मिला। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया। 24.46 प्रतिशत वोट और 88 सीटें जेडीयू को मिली। पांच साल में नीतीश कुमार का सफर 'सुशासन कुमार' तक पहुंच गया। 2010 में चुनाव की बारी आई तो 'सुशासन' के दम पर एनडीए ने एक बार फिर अपना परचम लहराया। 88 विधायकों वाले नीतीश कुमार अब 115 विधायकों वाले हो चुके थे। मगर, एक चीज ने नीतीश कुमार की नींद उड़ा दी, वो थी वोट शेयर। 2005 में 24.46 प्रतिशत वोट वाले नीतीश कुमार 2010 में 22.58 प्रतिशत वाले हो गए। मतलब, नीतीश की 1.88 फीसदी वोट शेयर गिर चुकी थी। नीतीश की 'क्लेश' की शुरुआत की जड़ में यही 1.88 प्रतिशत रही।
लालू के साथ भी गिरा नीतीश का 'ग्राफ'2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया। एनडीए से अलग हो गए। किसी तरह विधानसभा में सरकार बचा लिए। अकेले, मोदी लहर का मुकाबला करने को ठानी। मगर, जब रिजल्ट आया तो भ्रम टूट चुका था। करीब साढ़े 6 फीसदी वोट शेयर गिर गए और 20 सांसदों की पार्टी रही जेडीयू 2 पर आकर सिमट गई। फिर, नीतीश कुमार ने लालू यादव का दरवाजा खटखटाया। 10 साल से सत्ता से बेदखल लालू यादव ने दिल खोलकर 'छोटे भाई' का स्वागत किया। 2015 विधानसभा चुनाव में नया एलायंस बना, जिसका नाम दिया गया 'महागठबंधन'। रिजल्ट में 115 विधायकों वाली पार्टी जेडीयू 71 पर आकर अटक गई, वोट प्रतिशत भी 16 के आसपास ही रहा। साफ-साफ कहें तो 'अहम संतुष्टि' (Ego Satisfaction) के अलावा नीतीश कुमार को कुछ खास हासिल नहीं हुआ। न तो सीटें बढ़ी ना ही वोट शेयर।
20 साल में करीब 6 फीसदी फिसल गए नीतीश2019 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार ने महागठबंधन के साथ लड़ा। दो सांसदों वाली पार्टी अब 16 तक पहुंच चुकी थी। वोट शेयर 16 से 22 पर आ चुका था। मगर, नीतीश कुमार का दिल नहीं भरा। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले उन्होंने पलटी मार दी और एनडीए के पाले में आ गए। जब फाइनल रिजल्ट आया तो 71 विधायकों वाली पार्टी 43 पर सिमट चुकी थी। 22 प्रतिशत वाला वोट शेयर 15 पर आ चुका था यानि करीब 7 फीसदी की गिरावट हो चुकी थी। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मार दी और एनडीए के पाले में आ गए। इस चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी 16 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी और 12 पर जीत मिली। मगर, वोट शेयर के मामले में नीतीश कुमार लकी साबित नहीं हुए, करीब साढ़े 18 फीसदी वोट शेयर रहा। 2005 में नीतीश कुमार ने 24.46 प्रतिशत वोट शेयर से शुरुआत की थी, जो आठ चुनाव लड़ने के बाद 18.52 फीसदी पर टिकी है। मतलब, 5.94 प्रतिशत की गिरवाट है। अब, 2025 बिहार विधानसभा चुनाव पर सभी की नजरें टिकी है, इस बार नीतीश कुमार एनडीए की साइड से फाइट कर रहे हैं।
'0.03%' से फिसल गई थी तेजस्वी की कुर्सीदरअसल, इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में एक-एक वोट अहम हो जाते हैं। 1999 में अच्छी-खासी चल रही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई थी। बिहार चुनाव 2020 की बात करें तो महज 0.03 फीसदी के अंतर से तेजस्वी पूरी की पूरी सत्ता हार गए। मुख्यमंत्री बनने का सपना महज 12 हजार 655 वोटों ने तोड़ दिया। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को 1,57,01,226 वोट मिले थे। जबकि, महागठबंधन को 1,56,88,571 मत हासिल हुए। सीटों की बात करें तो एनडीए को 125 सीटें मिली, जो बहुमत से तीन ज्यादा थी। वहीं, महागठबंधन को 110 सीटें मिली। बाकी आठ सीटों को दूसरी पार्टियों ने जीता। यानी, कुर्सी की रेस को तेजस्वी हार चुके थे। आश्चर्य की बात ये रही कि 7,06,252 मतदाताओं ने NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) का बटन दबाया जो, मतदान के कुल प्रतिशत का 1.68 था। जबकि, तेजस्वी यादव सिर्फ और सिर्फ 0.03 प्रतिशत यानी 12,655 वोटों से सत्ता की लड़ाई हार गए थे। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर है, मगर नीतीश की पार्टी का वोट शेयर भी कम दिलचस्प नहीं रहने वाला।
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