नई दिल्ली: पाकिस्तान के पूर्व जनरल परवेज मुशर्रफ को लेकर एक्स सीआईए एजेंट ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने कहा है कि मुशर्रफ अमेरिका को यह दिखाते थे कि वह भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए काम कर रहे हैं, जबकि वह खुद भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे थे।
पूर्व सीआईए एजेंट जॉन किरियाकू ने एएनआई को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक अब्दुल कादिर खान को मारने की कोशिश नहीं की। ऐसा सऊदी सरकार के सीधे हस्तक्षेप के कारण हुआ। किरियाकू ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका के पास खान की हर जानकारी थी, लेकिन सऊदी अरब के कहने पर उन्होंने पीछे हटने का फैसला किया।
पाकिस्तान को था सऊदी सरकार का समर्थन
उन्होंने दावा किया कि मेरा एक सहकर्मी अब्दुल कादिर के साथ काम कर रहा था। अगर हमने इजराइल का तरीका अपनाया होता, तो हम उसे मार देते। उसे ढूंढना आसान था। हमें पता था कि वह कहां रहता है। हमें पता था कि वह अपना दिन कैसे बिताता है। लेकिन उसे सऊदी सरकार का भी समर्थन प्राप्त था।
पूर्व सीआईए अधिकारी के अनुसार, इस कूटनीतिक दबाव के कारण अमेरिका की विदेश नीति में एक बड़ी चूक हुई। किरियाकू ने इसे वाशिंगटन की एक गलती बताया है। उन्होंने कहा, यह तत्कालीन अमेरिकी सरकार बड़ी गलती थी। किरियाकू ने यह भी बताया कि सीनेट की विदेश संबंध समिति के साथ काम करते हुए उन्होंने पाया कि सीआईए और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के कई अधिकारियों ने पुष्टि की थी कि व्हाइट हाउस ने खान को निशाना न बनाने का निर्देश दिया था।
2002 में भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाला था युद्ध
किरियाकू ने भारत को लेकर भी बड़ा दावा किया, उन्होंने कहा कि साल 2002 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के कगार पर थे। उस वक्त 2001 में भारतीय संसद पर हमला हुआ था। उस वक्त पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ अमेरिका के साथ होने का दिखावा करते थे। साथ ही यह दिखाते थे वह भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए काम कर रहे हैं। जबकि वह खुद भारत के खिलाफ आतंकवादियों की गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में पाकिस्तानी सेना को अलकायदा की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी, उन्हें बस भारत की चिंता रहती थी।
पूर्व सीआईए एजेंट जॉन किरियाकू ने एएनआई को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक अब्दुल कादिर खान को मारने की कोशिश नहीं की। ऐसा सऊदी सरकार के सीधे हस्तक्षेप के कारण हुआ। किरियाकू ने एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका के पास खान की हर जानकारी थी, लेकिन सऊदी अरब के कहने पर उन्होंने पीछे हटने का फैसला किया।
पाकिस्तान को था सऊदी सरकार का समर्थन
उन्होंने दावा किया कि मेरा एक सहकर्मी अब्दुल कादिर के साथ काम कर रहा था। अगर हमने इजराइल का तरीका अपनाया होता, तो हम उसे मार देते। उसे ढूंढना आसान था। हमें पता था कि वह कहां रहता है। हमें पता था कि वह अपना दिन कैसे बिताता है। लेकिन उसे सऊदी सरकार का भी समर्थन प्राप्त था।
पूर्व सीआईए अधिकारी के अनुसार, इस कूटनीतिक दबाव के कारण अमेरिका की विदेश नीति में एक बड़ी चूक हुई। किरियाकू ने इसे वाशिंगटन की एक गलती बताया है। उन्होंने कहा, यह तत्कालीन अमेरिकी सरकार बड़ी गलती थी। किरियाकू ने यह भी बताया कि सीनेट की विदेश संबंध समिति के साथ काम करते हुए उन्होंने पाया कि सीआईए और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के कई अधिकारियों ने पुष्टि की थी कि व्हाइट हाउस ने खान को निशाना न बनाने का निर्देश दिया था।
2002 में भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाला था युद्ध
किरियाकू ने भारत को लेकर भी बड़ा दावा किया, उन्होंने कहा कि साल 2002 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के कगार पर थे। उस वक्त 2001 में भारतीय संसद पर हमला हुआ था। उस वक्त पाकिस्तान के तत्कालीन जनरल परवेज मुशर्रफ अमेरिका के साथ होने का दिखावा करते थे। साथ ही यह दिखाते थे वह भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए काम कर रहे हैं। जबकि वह खुद भारत के खिलाफ आतंकवादियों की गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में पाकिस्तानी सेना को अलकायदा की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी, उन्हें बस भारत की चिंता रहती थी।
You may also like

झाड़फूंक के चक्कर में अधेड़ की हत्या, दो हत्यारोपित गिरफ्तार

मुख्यमंत्री डॉ. यादव की अवधारणा का पर्याय बना मनासा का सांदीपनि विद्यालय

दिग्विजय सिंह खुद को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए कर रहे हैं बयानबाजीः रामेश्वर शर्मा

बॉलीवुड के एक्टर राज किरण: ग्लैमर से गुमनामी तक का सफर

बिना पार्किंग के अस्पताल, अपार्टमेंट और व्यावसायिक प्रतिष्ठान नहीं हाेंगे संचालित : जीडीए उपाध्यक्ष




