मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर मुंबई को एक इंटरनेशनल सिटी के रूप में विकसित करना है, तो सरकार और उसके निकायों को 2011 के बाद बने अवैध झोपड़ों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। कोर्ट ने कहा कि इस दिशा में सरकार को प्रगतिशील सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि झोपड़पट्टियों का बेतरतीब विस्तार शहर के विकास में बड़ी बाधा बन रहा है। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि मुंबई में झोपड़पट्टियां इस तरह से एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं कि कब कोई क्षेत्र पूरी तरह झोपड़ों से भर जाता है, इसका अंदाज़ा ही नहीं चलता।
सरकार ने क्या बताया
कोर्ट ने मानखुर्द क्षेत्र का उदाहरण देते हुए पूछा कि सरकार ने झोपड़ों को संरक्षण देने की तय डेडलाइन (2011) के बाद बने अवैध निर्माणों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की है। सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने बताया कि 2011 के बाद बने झोपड़ों को किसी भी प्रकार का संरक्षण नहीं दिया गया है। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि सरकार वास्तव में मुंबई को विश्व स्तरीय शहर बनाना चाहती है, तो उसे स्लम विस्तार पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
क्या है मामला
यह मामला महाराष्ट्र स्लम एक्ट, 1971 की समीक्षा से जुड़ा है। 30 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट को इस अधिनियम की स्वत: संज्ञान लेकर समीक्षा करने के निर्देश दिए थे। कारण यह था कि बड़ी संख्या में स्लम पुनर्विकास परियोजनाएं वर्षों से अधर में लटकी हुई हैं। जानकारी के अनुसार, वर्तमान में हाईकोर्ट में स्लम एक्ट के तहत 1600 से अधिक मामले लंबित हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों का निपटारा और अवैध झोपड़ों पर सख्त कार्रवाई ही शहर के संतुलित विकास और नागरिक सुविधाओं के विस्तार की दिशा में पहला कदम हो सकता है।
सरकार ने क्या बताया
कोर्ट ने मानखुर्द क्षेत्र का उदाहरण देते हुए पूछा कि सरकार ने झोपड़ों को संरक्षण देने की तय डेडलाइन (2011) के बाद बने अवैध निर्माणों के खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई की है। सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने बताया कि 2011 के बाद बने झोपड़ों को किसी भी प्रकार का संरक्षण नहीं दिया गया है। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि सरकार वास्तव में मुंबई को विश्व स्तरीय शहर बनाना चाहती है, तो उसे स्लम विस्तार पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
क्या है मामला
यह मामला महाराष्ट्र स्लम एक्ट, 1971 की समीक्षा से जुड़ा है। 30 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट को इस अधिनियम की स्वत: संज्ञान लेकर समीक्षा करने के निर्देश दिए थे। कारण यह था कि बड़ी संख्या में स्लम पुनर्विकास परियोजनाएं वर्षों से अधर में लटकी हुई हैं। जानकारी के अनुसार, वर्तमान में हाईकोर्ट में स्लम एक्ट के तहत 1600 से अधिक मामले लंबित हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों का निपटारा और अवैध झोपड़ों पर सख्त कार्रवाई ही शहर के संतुलित विकास और नागरिक सुविधाओं के विस्तार की दिशा में पहला कदम हो सकता है।
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