नई दिल्ली: चीन अब भी 'गरीब' होने का मुखौटा लगाए हुए है। यह ताज्जुब की ही बात है कि सुपरपावर अमेरिका को टक्कर देने वाला महाबली चीन अब भी एक 'विकासशील' देश है। चीन ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में विकासशील देश का दर्जा कायम रखा है। यह और बात है कि भविष्य में होने वाली बातचीत में वह 'विशेष और अलग व्यवहार' (एसडीटी) की मांग नहीं करेगा। जिनेवा में डब्ल्यूटीओ में चीनी मिशन के अधिकारियों ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि चीन नए डब्ल्यूटीओ समझौतों में एसडीटी लाभ नहीं लेगा। लेकिन, विकासशील देश के रूप में उसकी पहचान बनी रहेगी।
यह घोषणा डब्ल्यूटीओ के अन्य सदस्यों, खासकर अमेरिका की मांगों के बाद आई है। अमेरिका चाहता था कि चीन एसडीटी के सभी फायदे छोड़ दे। डब्ल्यूटीओ में चीन के स्थायी मिशन के प्रभारी ली यिहोंग ने कहा, 'इससे चीन के विकासशील देश के दर्जे में कोई बदलाव नहीं होगा। चाहे डब्ल्यूटीओ के ढांचे के भीतर हो या किसी अन्य संदर्भ में। डब्ल्यूटीओ में एक विकासशील सदस्य के रूप में उसकी पहचान बनी रहेगी।' उन्होंने आगे कहा, 'चीन ग्लोबल साउथ का महत्वपूर्ण सदस्य बना हुआ है और हमेशा एक विकासशील देश रहेगा।'
भारत के लिए कैसे है चुनौती?
चीन का यह कदम भारत जैसे देशों के लिए बड़ी चुनौती पेश करता है। भारत एक विकासशील देश है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में वह उसी श्रेणी के तहत लाभ पाता है। उसे ऐसे प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करना पड़ता है जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद उसी 'विकासशील' के टैग का इस्तेमाल कर रियायतें ले रहा है। भारत और अन्य कई विकसित देश लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि चीन की विशाल अर्थव्यवस्था को अब विकासशील देशों को मिलने वाली विशेष छूट की जरूरत नहीं है। चीन का यह 'मुखौटा' भारत और वैश्विक व्यापार व्यवस्था दोनों के लिए जटिल स्थिति पैदा करता है। उसे एक तरफ तो अपने हितों की रक्षा करनी है और दूसरी तरफ एक ऐसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करना है जो नियमों का फायदा उठा रहा है।
टैरिफ और सब्सिडी का लाभ
यह घोषणा प्रधानमंत्री ली कियांग ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के मौके पर बैठक में की। चीन, सऊदी अरब जैसे देशों के साथ ऐतिहासिक रूप से एक विकासशील सदस्य के रूप में पहचाना गया है। इससे उन्हें ऊंचे टैरिफ और कुछ सब्सिडी जैसे एसडीटी लाभ मिलते हैं।
ली यिहोंग ने इस फैसले को बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का समर्थन करने की चीन की प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया। एडीटी की मांग न करने का विकल्प WTO सुधार को आगे बढ़ाने के प्रयासों में 'सकारात्मक ऊर्जा' भरने के लिए है।
अमेरिका ने इसके पहले अपील की कि चीन को ऐसे फायदों को छोड़ना चाहिए। अमेरिकी अधिकारियों का तर्क है कि महत्वपूर्ण डब्ल्यूटीओ सुधार चीन और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से इस तरह के कदमों पर निर्भर करता है। चीनी प्रतिनिधियों का कहना है कि भविष्य के समझौतों में एसडीटी का फायदा नहीं लिया जाएगा। लेकिन, डब्ल्यूटीओ के भीतर एक विकासशील देश के रूप में राष्ट्र की स्थिति और भागीदारी जारी रहेगी।
यह घोषणा डब्ल्यूटीओ के अन्य सदस्यों, खासकर अमेरिका की मांगों के बाद आई है। अमेरिका चाहता था कि चीन एसडीटी के सभी फायदे छोड़ दे। डब्ल्यूटीओ में चीन के स्थायी मिशन के प्रभारी ली यिहोंग ने कहा, 'इससे चीन के विकासशील देश के दर्जे में कोई बदलाव नहीं होगा। चाहे डब्ल्यूटीओ के ढांचे के भीतर हो या किसी अन्य संदर्भ में। डब्ल्यूटीओ में एक विकासशील सदस्य के रूप में उसकी पहचान बनी रहेगी।' उन्होंने आगे कहा, 'चीन ग्लोबल साउथ का महत्वपूर्ण सदस्य बना हुआ है और हमेशा एक विकासशील देश रहेगा।'
भारत के लिए कैसे है चुनौती?
चीन का यह कदम भारत जैसे देशों के लिए बड़ी चुनौती पेश करता है। भारत एक विकासशील देश है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में वह उसी श्रेणी के तहत लाभ पाता है। उसे ऐसे प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करना पड़ता है जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद उसी 'विकासशील' के टैग का इस्तेमाल कर रियायतें ले रहा है। भारत और अन्य कई विकसित देश लंबे समय से यह तर्क देते रहे हैं कि चीन की विशाल अर्थव्यवस्था को अब विकासशील देशों को मिलने वाली विशेष छूट की जरूरत नहीं है। चीन का यह 'मुखौटा' भारत और वैश्विक व्यापार व्यवस्था दोनों के लिए जटिल स्थिति पैदा करता है। उसे एक तरफ तो अपने हितों की रक्षा करनी है और दूसरी तरफ एक ऐसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करना है जो नियमों का फायदा उठा रहा है।
टैरिफ और सब्सिडी का लाभ
यह घोषणा प्रधानमंत्री ली कियांग ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के मौके पर बैठक में की। चीन, सऊदी अरब जैसे देशों के साथ ऐतिहासिक रूप से एक विकासशील सदस्य के रूप में पहचाना गया है। इससे उन्हें ऊंचे टैरिफ और कुछ सब्सिडी जैसे एसडीटी लाभ मिलते हैं।
ली यिहोंग ने इस फैसले को बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का समर्थन करने की चीन की प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया। एडीटी की मांग न करने का विकल्प WTO सुधार को आगे बढ़ाने के प्रयासों में 'सकारात्मक ऊर्जा' भरने के लिए है।
अमेरिका ने इसके पहले अपील की कि चीन को ऐसे फायदों को छोड़ना चाहिए। अमेरिकी अधिकारियों का तर्क है कि महत्वपूर्ण डब्ल्यूटीओ सुधार चीन और अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से इस तरह के कदमों पर निर्भर करता है। चीनी प्रतिनिधियों का कहना है कि भविष्य के समझौतों में एसडीटी का फायदा नहीं लिया जाएगा। लेकिन, डब्ल्यूटीओ के भीतर एक विकासशील देश के रूप में राष्ट्र की स्थिति और भागीदारी जारी रहेगी।
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