चुनाव आयोग ने Special Intensive Revision यानी SIR के दूसरे चरण का ऐलान कर दिया है। इस बार राज्य ज्यादा हैं - 12, तो चुनौती भी उसी हिसाब से ज्यादा बड़ी है। उम्मीद कर सकते हैं कि बिहार में पुनरीक्षण प्रक्रिया में आई दिक्कतें अब आयोग के लिए अनुभव का काम करेंगी और वहां जैसी परेशानी बाकी जगहों पर लोगों को नहीं उठानी पड़ेगी।
चुनावी राज्य: मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने SIR के शिड्यूल का ऐलान करते हुए कहा कि प्रक्रिया यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी योग्य मतदाता छूट न जाए और कोई भी अयोग्य मतदाता लिस्ट में शामिल न हो। जिन राज्यों को दूसरे चरण में चुना गया है, उनमें केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। असम में भी अगले ही साल असेंबली इलेक्शन है, लेकिन उसे दूसरे चरण से बाहर रखा गया।
ज्यादा समय: इस बार आयोग ने SIR के लिए खुद को अधिक वक्त दिया है। बिहार में सबसे बड़ा सवाल जल्दबाजी को लेकर ही उठा था। राज्य में जून के आखिर में वोटर पुनरीक्षण अभियान की घोषणा की गई थी, जबकि पता था कि अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस हड़बड़ी का असर पूरी प्रक्रिया के दौरान दिखा, खासकर डॉक्युमेंट्स को लेकर जनता ही नहीं, चुनाव कर्मियों में भी गफलत की स्थिति रही। सरकारी कार्यालयों में भीड़ उमड़ने से जैसी अफरातफरी देखने को मिली, वैसा नहीं होना चाहिए।
आधार पर स्पष्टता: आयोग ने इस बार आधार कार्ड को लेकर रुख पहले ही साफ कर दिया है कि यह जन्म, नागरिकता या निवास प्रमाण पत्र के रूप में मान्य नहीं होगा, लेकिन SIR में इसे एक डॉक्युमेंट के रूप में पेश किया जा सकेगा। यह स्पष्टता इसलिए जरूरी थी, क्योंकि बिहार में पहले चरण के दौरान आधार कार्ड का मसला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था। दस्तावेज ऐसे होने चाहिए, जो अधिकतम आबादी की पहुंच में हों और आधार आज पहचान का सबसे सरल जरिया है।
प्रक्रिया सरल बने: SIR को 21 साल बाद अंजाम दिया जा रहा है। वोटर लिस्ट में समय-समय पर सुधार जरूरी है और इस प्रक्रिया के औचित्य पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन इसे अंजाम देने के तरीके पर जरूर ध्यान देना चाहिए। SIR का मकसद किसी की नागरिकता तय करना या ज्यादा से ज्यादा लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर करना नहीं है। इसे इतना सरल होना चाहिए, जिससे लोग वोटर बनने के लिए प्रेरित हों और उनमें लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के लिए उत्साह जगे।
चुनावी राज्य: मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने SIR के शिड्यूल का ऐलान करते हुए कहा कि प्रक्रिया यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी योग्य मतदाता छूट न जाए और कोई भी अयोग्य मतदाता लिस्ट में शामिल न हो। जिन राज्यों को दूसरे चरण में चुना गया है, उनमें केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। असम में भी अगले ही साल असेंबली इलेक्शन है, लेकिन उसे दूसरे चरण से बाहर रखा गया।
ज्यादा समय: इस बार आयोग ने SIR के लिए खुद को अधिक वक्त दिया है। बिहार में सबसे बड़ा सवाल जल्दबाजी को लेकर ही उठा था। राज्य में जून के आखिर में वोटर पुनरीक्षण अभियान की घोषणा की गई थी, जबकि पता था कि अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस हड़बड़ी का असर पूरी प्रक्रिया के दौरान दिखा, खासकर डॉक्युमेंट्स को लेकर जनता ही नहीं, चुनाव कर्मियों में भी गफलत की स्थिति रही। सरकारी कार्यालयों में भीड़ उमड़ने से जैसी अफरातफरी देखने को मिली, वैसा नहीं होना चाहिए।
आधार पर स्पष्टता: आयोग ने इस बार आधार कार्ड को लेकर रुख पहले ही साफ कर दिया है कि यह जन्म, नागरिकता या निवास प्रमाण पत्र के रूप में मान्य नहीं होगा, लेकिन SIR में इसे एक डॉक्युमेंट के रूप में पेश किया जा सकेगा। यह स्पष्टता इसलिए जरूरी थी, क्योंकि बिहार में पहले चरण के दौरान आधार कार्ड का मसला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था। दस्तावेज ऐसे होने चाहिए, जो अधिकतम आबादी की पहुंच में हों और आधार आज पहचान का सबसे सरल जरिया है।
प्रक्रिया सरल बने: SIR को 21 साल बाद अंजाम दिया जा रहा है। वोटर लिस्ट में समय-समय पर सुधार जरूरी है और इस प्रक्रिया के औचित्य पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन इसे अंजाम देने के तरीके पर जरूर ध्यान देना चाहिए। SIR का मकसद किसी की नागरिकता तय करना या ज्यादा से ज्यादा लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर करना नहीं है। इसे इतना सरल होना चाहिए, जिससे लोग वोटर बनने के लिए प्रेरित हों और उनमें लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के लिए उत्साह जगे।
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