Patna, 25 अगस्त . राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा हर वर्ष 25 अगस्त से 8 सितंबर तक मनाया जाता है. इसकी शुरुआत वर्ष 1985 में हुई थी और इसका मुख्य उद्देश्य समाज में नेत्रदान के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना और कॉर्नियल ब्लाइंडनेस की समस्या को कम करना है. इस दौरान तमाम ‘आई’ बैंक, डॉक्टर, सामाजिक संस्थाएं लोगों को प्रेरित करते हैं कि मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान कर दूसरों को रोशनी दें.
समाचार एजेंसी से खास बातचीत में अखंड ज्योति आई हॉस्पिटल के अकादमिक एवं शोध सलाहकार और अध्यक्ष; आईजीआईएमएस Patna के प्रोफेसर एमेरिटस, और डॉ. आरपी सेंटर, एम्स New Delhi के पूर्व निदेशक डॉ. राजवर्धन झा आजाद ने बताया कि कॉर्नियल ब्लाइंडनेस भारत के लिए एक गंभीर चुनौती है.
डॉ. राजवर्धन झा आजाद ने कहा कि कॉर्नियल ब्लाइंडनेस तब होती है जब आंख की पारदर्शी परत यानी कॉर्निया अपनी चमक खो देती है, जिससे व्यक्ति की दृष्टि बाधित हो जाती है. भारत में वर्ष 2020 तक अनुमानित एक करोड़ से अधिक लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से प्रभावित हो चुके हैं और हर साल इसमें 25 से 30 हजार नए मरीज जुड़ते हैं. ऐसे में देश में हर वर्ष लगभग 1 से 1.5 लाख कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है.
नेत्रदान की कमी को गंभीर बताते हुए डॉ. आजाद ने कहा कि वर्तमान में भारत में केवल 25 से 30 हजार प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं, जबकि आवश्यकता इससे कई गुना अधिक है. इसका सीधा मतलब यह है कि लाखों लोग सिर्फ इसलिए अंधेपन से जूझते रहते हैं, क्योंकि उन्हें दान किया गया कॉर्निया उपलब्ध नहीं हो पाता.
कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह बहुत ही सरल है. मृत व्यक्ति से कॉर्निया निकालकर जरूरतमंद मरीज की आंख में प्रत्यारोपित किया जाता है. इस सर्जरी से मरीज की फिर से देखने की क्षमता मिल सकती है.
डॉ. आजाद ने कहा कि नेत्रदान पखवाड़ा इसी कमी को पूरा करने का प्रयास है. इसके साथ ही उन्होंने लोगों से अपील की कि इस महादान में बढ़-चढ़कर भाग लें, ताकि जिन आंखों से जीवन देखा गया, वे किसी और को भी रोशनी दे सकें.
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पीएसके/एएस
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