New Delhi, 29 अक्टूबर . बंगाल में दुर्गा पूजा की धूम के बारे में सभी ने सुना होगा, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मां जगद्धात्री की पूजा होती है.
यह पर्व न सिर्फ धार्मिक है बल्कि आत्मसंयम और अहंकार पर विजय प्राप्त करने का संदेश देता है.
जगद्धात्री माता के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है, जिसमें बताया गया है कि महिषासुर पर विजय प्राप्त होने के बाद देवताओं को अहंकार हो गया था. वे माता रानी की शक्तियों को भूलकर अहंकारी जैसा व्यवहार करने लगे थे, जिसके बाद उन्हें सबक सिखाने के लिए मां दुर्गा ने जगद्धात्री का अवतार लिया था. उन्होंने देवताओं को एक तिनका हटाने के लिए कहा और देवताओं की तमाम कोशिश के बाद भी वे इसे हटा नहीं पाए और फिर उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने माता से क्षमा याचना की.
इसके अलावा, एक अन्य कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार देवी ने हस्तिरूपी करिंद्रासुर नाम के असुर का वध किया था, जिसके बाद देवी की सवारी सिंह के नीचे हाथी की छवि भी होती है.
पश्चिम बंगाल में देवी जगद्धात्री के पूजन की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई थी. ऐसा कहा जाता है कि वहां के राजा कृष्णचंद्र राय ने दुर्गा पूजा के दौरान माता की पूजा नहीं की थी. इसके पश्चाताप स्वरूप उन्होंने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जगद्धात्री की पूजा शुरू की. धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे बंगाल और पूर्वी India में फैल गई. आज यह त्योहार लाखों लोगों का आकर्षण है.
कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस मां जगद्धात्री के बड़े उपासक थे. वे कहते थे कि मां की उपासना से मनुष्य के अंदर का भय, क्रोध, वासना और अहंकार खत्म होने लगता है.
माता के पूजन के दौरान जलने वाली धूप 16 तरह के मसालों से बनती है. बाहर से कोई धूप नहीं खरीदी जाती. जगद्धात्री पूजा बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर है.
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एनएस/एबीएम
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