
"जिन्होंने ये हमला किया है उन आतंकियों को और हमले की साज़िश रचने वालों को उनकी कल्पना से भी बड़ी सज़ा मिलेगी. सज़ा मिलकर रहेगी."
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी में यह प्रतिक्रिया दी थी.
इसके बाद भारतीय सेना ने छह और सात मई की दरमियानी रात को पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में 'सैन्य कार्रवाई' की. इस दौरान कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दल केंद्र सरकार और सेना के साथ खड़े नज़र आए.
भारतीय सेना ने इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया और 'आतंकवादियों के नौ ठिकानों पर हमला' करने की बात कही.
भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक चले संघर्ष के बाद शनिवार यानी 10 मई को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान संघर्ष विराम के लिए तैयार हो गए. कुछ देर बाद पाकिस्तान ने भी सीज़फ़ायर की बात कही और अमेरिका का शुक्रिया अदा किया.
भारत ने भी उसी दिन सैन्य कार्रवाई रोकने की बात कही, हालांकि भारत ने ये घोषणा करते हुए अमेरिका का ज़िक्र नहीं किया.
अब तक जो विपक्षी दल सरकार के साथ खड़े थे, वो ट्रंप की घोषणा के बाद सरकार से सवाल पूछने लगे. कांग्रेस का कहना है कि इस घोषणा का मकसद दोनों देश के मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करना है. पार्टी ने इस मुद्दे पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है.
ट्रंप ने कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने के लिए मदद की पेशकश भी की है. इस क़दम का पाकिस्तान ने स्वागत किया है लेकिन भारत ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधनसोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से दावा किया कि भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष रुकवाने में अमेरिका का रोल रहा.
उन्होंने कहा, "हमने दोनों देशों से कहा कि हम आपके साथ बहुत सारा ट्रेड करते हैं, इसलिए इस संघर्ष को बंद करें. अगर आप रुकेंगे तो हम ट्रेड करेंगे, अगर नहीं रुकेंगे तो हम ट्रेड नहीं करेंगे."
इसके थोड़ी देर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि, 'पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद रोकना ही होगा.'
उन्होंने कहा, "'टेरर और ट्रेड एक साथ नहीं चल सकते. टेरर और टॉक एक साथ नहीं चल सकते. पानी और ख़ून एक साथ नहीं बह सकते."
ट्रंप की घोषणा आश्चर्यजनक: कांग्रेसअमेरिका की मध्यस्थता को लेकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को . इसमें संसद के विशेष सत्र बुलाने वाली मांग को दोहराया गया है.
पत्र में लिखा गया है, "हालिया घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने आपको पुनः पत्र लिखकर विपक्षी दलों की ओर से संसद का विशेष सत्र बुलाने की सर्वसम्मत मांग दोहराई है, ताकि पहलगाम आतंकी हमला, ऑपरेशन सिंदूर, पहले वॉशिंगटन डीसी और बाद में भारत और पाकिस्तान सरकारों द्वारा घोषित युद्धविराम पर चर्चा हो सके."
रविवार को इस मामले पर कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और ट्रंप की घोषणा को बताया.
सचिन पायलट ने कहा, "हम सभी को आश्चर्य हुआ कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फ़ायर की घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति ने की. यह शायद पहली बार हुआ है, जब सीज़फ़ायर की घोषणा सोशल मीडिया के ज़रिए अमेरिका के राष्ट्रपति करते हैं. उन्होंने जो अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा है, हमें उस पर भी ध्यान देना चाहिए."

शनिवार को अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने सोशल मीडिया पर कर सीज़फ़ायर के फ़ैसले के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी.
बयान में कहा गया था, "पिछले 48 घंटों में उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और मैंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर, पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर और भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और असीम मलिक के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की है."
मार्को रूबियो के इस बयान पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आपत्ति जताई है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर लिखा, "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मानना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संवाद के लिए "तटस्थ मंच" का उल्लेख अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो द्वारा किया जाना कई सवाल खड़े करता है - क्या हमने शिमला समझौते को छोड़ दिया है? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाजे खोल दिए हैं?"
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक बार फिर यह मांग करती है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए और पहलगाम, ऑपरेशन सिंदूर, तथा पहले वॉशिंगटन डीसी और उसके बाद भारत और पाकिस्तान की सरकारों द्वारा घोषित किए गए संघर्षविराम के विषय पर संसद का विशेष सत्र आयोजित किया जाए,…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) May 11, 2025
आम आदमी पार्टी के का कहना है कि ट्रंप की सीज़फ़ायर वाली घोषणा देश के 140 करोड़ लोगों के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ करने जैसी है.
संजय सिंह सवाल उठाते हुए कहते हैं, "क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत पर अमेरिका की दादागिरी चलेगी? अमेरिका का दबाव चलेगा? अमेरिका के राष्ट्रपति सीज़फ़ायर डिक्लेयर कर रहे हैं और सरकार मान जाती है. सीज़फ़ायर की शर्तों का पता नहीं. पूरा देश आपसे पूछना चाहता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी."
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि उनकी पार्टी ने लगातार सीज़फ़ायर की वकालत की है.
एक्स पर ट्रंप के पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए डी. राजा ने , "हमारा मानना है कि भारत और पाकिस्तान में डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिका के हस्तक्षेप के बिना द्विपक्षीय रूप से अपने मुद्दों को हल करने की परिपक्वता है. यह प्रधानमंत्री मोदी पर निर्भर है कि वे देश और हमारे लोगों को बताएं कि अमेरिका द्वारा की गई 'मध्यस्थता' क्या थी?"
क्या कह रहे हैं जानकार?पहलगाम हमले के बाद 24 अप्रैल को सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. बैठक के बाद सभी दलों ने सरकार को समर्थन देने की बात कही थी. लेकिन भारत के सैन्य कार्रवाई रोकने के फ़ैसले के बाद विपक्ष कई मुद्दों पर सरकार पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस पूरी प्रक्रिया में सरकार ने विपक्ष को भरोसे में नहीं लिया?
वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा का कहना है कि सरकार एक राय बनाकर युद्ध में गई थी लेकिन एक राय बनाकर युद्ध से नहीं निकली है.
विनोद शर्मा कहते हैं, "ये बात सच है कि विपक्ष को सीज़फ़ायर के बारे में पहले से जानकारी नहीं दी गई थी. हो सकता है कि कुछ ऐसी परिस्थितियां रही हों जिसके कारण विपक्ष को भरोसा में नहीं लिया गया हो. मेरा यह मानना है कि अब विपक्ष को जल्द से जल्द भरोसे में लेना चाहिए. बताना चाहिए कि किस परिस्थिति में संघर्ष विराम हुआ है और इसके चलने की संभावना कितनी है."
ट्रंप अपने चुनावी अभियान में रूस-यूक्रेन और ग़ज़ा-इसराइल जंग को बंद करवाने और मध्यस्थता करने की बात करते रहे थे. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इस दिशा में कोशिश ज़रूर की लेकिन पूरी तरह से सफलता नहीं मिल पाई. जानकार मान रहे हैं कि अब उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फ़ायर का दावा कर दुनिया भर में एक संदेश देने की कोशिश की है.
अमेरिका को लेकर भारत की चुप्पीअमेरिका की तरफ़ से सीज़फ़ायर पर भारत और प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिया गया है लेकिन भारत ने अब तक अमेरिका का ज़िक्र नहीं किया है.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने शनिवार शाम मीडिया ब्रीफ़िंग में दोनों देशों के बीच लड़ाई रोकने को लेकर बनी सहमति के बारे में जानकारी दी.
विक्रम मिसरी ने कहा कि पाकिस्तान के डीजीएमओ के भारतीय डीजीएमओ को फ़ोन कॉल के बाद दोनों देशों में द्विपक्षीय सहमति बनी है. उन्होंने अमेरिका या किसी अन्य देश का नाम नहीं लिया.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अमेरिका का नाम लिए बग़ैर संघर्ष विराम की जानकारी दी थी. उन्होंने एक्स पर लिखा, "भारत-पाकिस्तान गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए एक सहमति पर पहुंचे हैं. आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत समझौता नहीं करेगा और यही रुख़ आगे भी रहेगा."
विनोद शर्मा का मानना है कि भारत हमेशा द्विपक्षीय वार्ता के पक्ष में रहा है इसलिए वह अमेरिका का नाम नहीं ले रहा है.
शर्मा बताते हैं, "भारत अभी यह नहीं दिखाना चाहता है कि किसी तीसरे देश के कारण युद्धविराम हुआ है क्योंकि भारत का मानना है कि द्विपक्षीय वार्ता से मसले सुलझते हैं. शिमला समझौते का सार भी यही था. हालांकि, यह सच है कि अमेरिका की बातचीत से ही युद्धविराम हुआ है. ये गंभीर मसला है और मुझे लगता है हिन्दुस्तान इसमें जल्दबाज़ी नहीं करना चाहेगा."
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग के बाद शिमला समझौता हुआ था. यह एक औपचारिक समझौता था, जिसे दोनों देशों के बीच शत्रुता ख़त्म करने के लिए अहम माना गया था. शिमला समझौते के मुताबिक़ दोनों देश सभी मुद्दों का समाधान द्विपक्षीय वार्ता और शांतिपूर्ण तरीक़ों से करेंगे.
पहलगाम हमले के बाद बाद भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया था और पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को निलंबित करने की घोषणा की थी.
अब पाकिस्तान ने अमेरिका की मध्यस्थता का स्वागत किया है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का शुक्रिया अदा किया.
“We have our backbones straight, enough will & resources to fight all atrocities. Times have passed when any nation sitting 3 or 4 thousand miles away could give orders to Indians on the basis of colour superiority to do as they wished.” Indira Gandhi
— Congress (@INCIndia) May 10, 2025
PM Indira Gandhi to US… pic.twitter.com/P1Y3DaFkeu
सीज़फ़ायर की घोषणा के बाद कांग्रेस ने अपने एक्स अकाउंट पर इंदिरा गांधी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की तस्वीर साझा की.
कांग्रेस ने इस तस्वीर के कैप्शन में लिखा, "इंदिरा गांधी ने निक्सन से कहा था- हमारी रीढ़ की हड्डी मजबूत है, सभी अत्याचारों से लड़ने के लिए हमारे पास पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन हैं. वह समय बीत चुका है जब 3 या 4 हज़ार मील दूर बैठा कोई भी देश रंग श्रेष्ठता के आधार पर भारतीयों को अपनी मर्ज़ी से काम करने का आदेश दे सकता था."
बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर के बयान का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए , "2025, 1971 नहीं है. 1971 में बांग्लादेश के स्थानीय लोग पाकिस्तान का विरोध कर रहे थे और भारत को मज़बूत समर्थन था. 2025 में ऐसा नहीं है. 1971 के उलट, आज पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं. फिर भी, भारत शायद एकमात्र ऐसा देश है जिसने परमाणु-सशस्त्र देश के क्षेत्र में गहराई से और बार-बार हमला किया है."
इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी की तुलना के सवाल पर ने कहा था कि 1971 के हालात 2025 से बिल्कुल अलग थे.
थरूर का कहना था, "यह ऐसा युद्ध नहीं था जिसे हम जारी रखना चाहते थे. हम बस आतंकवादियों को सबक सिखाना चाहते थे और वह सबक सिखाया गया है."
क्या 1971 और 2025 की तुलना की जा सकती है? वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी इस तुलना को ख़ारिज करते हैं.
प्रमोद जोशी का कहना है, "दोनों समय की परिस्थितियां अलग-अलग थीं और नेता भी अलग थे. 1971 की जंग का मकसद बांग्लादेश की आज़ादी थी जबकि अभी आतंकवादियों के ठिकानों को निशाना बनाया गया है. 1971 में सोवियत संघ अस्तित्व में था और पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश नहीं था."
कश्मीर पर ट्रंप ने क्या कहा?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सिर्फ़ सीज़फ़ायर तक सीमित नहीं रहे. बीते रविवार को उन्होंने कश्मीर मसले पर दोनों देशों के साथ काम करने की बात कही.
ट्रंप ने ट्रुथसोशल पर लिखा, "मुझे गर्व है कि अमेरिका आपको इस ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय (संघर्ष विराम) पर पहुंचने में मदद करने में सक्षम था. इसके अलावा, मैं आप दोनों के साथ मिलकर यह देखने के लिए काम करूंगा कि क्या "हज़ार सालों" के बाद कश्मीर के संबंध में कोई समाधान निकाला जा सकता है."
ट्रंप के इस बयान का पाकिस्तान ने स्वागत किया है. ने ट्रंप के बयान को लेकर एक्स पर लिखा, "हम राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा जम्मू और कश्मीर विवाद के समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों का समर्थन करने की इच्छा व्यक्त करने की सराहना करते हैं."
"यह एक ऐसा मुद्दा है जो दक्षिण एशिया और उससे आगे की शांति और सुरक्षा के लिए अहम है. पाकिस्तान इस बात की पुष्टि करता है कि जम्मू और कश्मीर विवाद का कोई भी न्यायसंगत और स्थायी समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों के अनुसार होना चाहिए और कश्मीरी लोगों के मौलिक अधिकारों की प्राप्ति सुनिश्चित करनी चाहिए."
हालांकि, भारत ने अब तक ट्रंप के बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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