अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी की इसी साल जनवरी के महीने में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ दुबई में मुलाक़ात हुई थी.
ये साल 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद दोनों देशों के बीच की सबसे उच्चस्तरीय वार्ता थी.
बीते 22 अप्रैल को जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हमला हुआ, तब अमीर ख़ान मुत्तक़ी ने इस हमले की निंदा की थी.
इसके कुछ ही दिनों बाद मई महीने में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और अमीर ख़ान मुत्तक़ी के बीच फ़ोन पर बात हुई.
और अब पाँच महीने बाद दोनों की दिल्ली में मुलाक़ात होनी है.
भारत के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, मुत्तक़ी को विदेश मंत्री के रूप में पूरे प्रोटोकॉल के साथ सम्मान दिया जाएगा.
उनकी मेहमाननवाज़ी सरकार के अधिकारी करेंगे और 10 अक्तूबर को दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से उनकी मुलाक़ात होगी.
राजस्थान में सरदार पटेल यूनिवर्सिटी ऑफ़ पुलिस, सिक्योरिटी एंड क्रिमिनल जस्टिस के इंटरनेशनल अफ़ेयर्स एंड सिक्योरिटी स्टडीज़ में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर विनय कौड़ा अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान, काउंटर-टेररिज़्म और काउंटर इंसरजेंसी जैसे विषयों पर रिसर्च कर रहे हैं.
वो कहते हैं कि अमीर ख़ान मुत्तक़ी तालिबान के उन वरिष्ठ नेताओं में से हैं, जिन्होंने समय के साथ अपनी राजनीतिक भूमिका और भाषाई शैली दोनों में काफ़ी परिवर्तन किया है.
उन्होंने बताया कि एक समय में मुत्तक़ी तालिबान के वैचारिक प्रचारक थे, लेकिन आज वे संगठन का एक ऐसा चेहरा बन चुके हैं जो अंतरराष्ट्रीय संवाद, कूटनीति और रणनीतिक समन्वय की ज़रूरतों को समझता है.

इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, अमीर ख़ान मुत्तक़ी का जन्म 7 मार्च, 1970 को अफ़ग़ानिस्तान के ज़ारघुन गाँव में हुआ था.
ये गाँव अफ़ग़ानिस्तान के हेलमंद प्रांत के नाद अली ज़िले में पड़ता है.
शुरुआती तालीम उन्होंने गाँव के ही एक मस्जिद से हासिल की.
लेकिन साल 1978 में जब अफ़ग़ानिस्तान में तख़्तापलट हुआ, देश में कम्युनिस्टों का शासन आया और उनके समर्थन में तत्कालीन सोवियत संघ ने अपनी सेना अफ़ग़ानिस्तान भेज दी, तब नौ साल की उम्र में मुत्तक़ी पाकिस्तान चले आए.
यहाँ अफ़ग़ान शरणार्थियों के लिए चलने वाले अलग-अलग स्कूलों में उन्होंने धार्मिक और पारंपरिक विज्ञान की पढ़ाई की.
शुरुआती सालों में मुत्तक़ी हेलमंद में कम्युनिस्ट शासन के विरुद्ध मुजाहिदीन यानी इस्लामिक लड़ाकों के जिहाद में काफ़ी सक्रिय रहे.
साल 1979 से लेकर साल 1989 तक सोवियत सेना और मुजाहिदीन के बीच जंग चली. फिर आख़िर में सोवियत सेना वापस चली गई.
जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, तब उस दौर में वहाँ तालिबान का उभार हुआ.
ये वो दौर था, जब अफ़ग़ानिस्तान गृह युद्ध की चपेट में था. मुजाहिदीन के अलग-अलग धड़े आपस में ही लड़ रहे थे.
काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन की वेबसाइट के मुताबिक़, अफ़ग़ान मुजाहिदीन यानी इस्लामिक लड़ाकों के एक समूह ने अमेरिकी और पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी के समर्थन से तालिबान की शुरुआत की.
समूह में पाकिस्तानी मदरसों में पढ़ने वाले पख़्तून जनजाति के युवा भी शामिल हुए.
पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है.
देश में चार साल तक मुजाहिदीनों के अलग-अलग गुटों में जारी संघर्ष और इस दौरान बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार और अनिश्चितता के बीच तालिबान को लोगों का समर्थन मिलने लगा.
तालिबान सरकार में पहले संस्कृति, फिर शिक्षा मंत्रीतालिबान अफ़ग़ानिस्तान पर अपनी पकड़ बना रहा था.
साल 1994 में उसके लड़ाके कंधार पहुँचे और फिर साल 1996 में राजधानी क़ाबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया.
इसी साल मुल्ला मोहम्मद उमर के नेतृत्व में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान को एक इस्लामिक अमीरात घोषित कर दिया.
तालिबान के इस आंदोलन में मुत्तक़ी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
साल 1994 में कंधार पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद उन्हें यहाँ के रेडियो स्टेशन का डायरेक्टर जनरल नियुक्त कर दिया गया.
साथ ही वह तालिबान हाई काउंसिल के सदस्य भी बनाए गए.
साल 1995 में मुत्तक़ी को कंधार के सूचना और संस्कृति का डायरेक्टर जनरल की ज़िम्मेदारी दी गई.
ठीक एक साल बाद, क़ाबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद वह इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान के आधिकारिक प्रवक्ता और कार्यवाहक सूचना एवं संस्कृति मंत्री बन गए.
साल 2000 में वो शिक्षा मंत्री नियुक्त किए गए. हालाँकि अगले ही साल अक्तूबर महीने में अमेरिका ने 9/11 के हमले के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया और दिसंबर के पहले हफ़्ते में देश में तालिबान का शासन ख़त्म हो गया.
तालिबान के कुछ नेताओं ने पाकिस्तान में शरण ले ली, वहीं कुछ ने देश के दूर-दराज़ इलाकों में रहकर गुरिल्ला जंग जारी रखी.
दोहा समझौते में भूमिकान्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में मुत्तक़ी के बारे में लिखा है, ''साल 2001 से साल 2021 तक यानी दो दशकों तक तालिबान एक विद्रोही ग्रुप की तरह अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय रहा. इस दौरान मुत्तकी ने तालिबान के पक्ष में रणनीतियाँ बनाईं, उसका प्रचार किया. इसके बाद वह सुप्रीम लीडर के मुख्य स्टाफ़ में शामिल हुए और क़तर में तालिबान की राजनीतिक टीम का भी हिस्सा बने. मुत्तक़ी ने तालिबान की इन्विटेशन एंड गाइडेंस कमिशन का नेतृत्व किया. इस कमेटी ने अफ़ग़ानी सेना और पुलिस कर्मचारियों को समझाया कि वो हार मान लें और उनके नेतृत्व को स्वीकार कर लें."
तालिबान ने अमेरिका के साथ साल 2018 में बातचीत शुरू कर दी थी.
फरवरी, 2020 में दोहा में दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ, जहाँ अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को हटाने की प्रतिबद्धता जताई और तालिबान अमेरिकी सैनिकों पर हमले बंद करने को तैयार हुआ.
दोहा में हुई इस बातचीत का नेतृत्व मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर कर रहे थे और मुत्तक़ी उनके सहयोगी और प्रतिनिधि के रूप में वहाँ मौजूद थे.
चुटकुला सुनाने की कला
विनय कौड़ बताते हैं, ''2021 में तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद मुत्तक़ी को अफ़ग़ानिस्तान का कार्यवाहक विदेश मंत्री नियुक्त किया गया. तब से वे विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तालिबान शासन का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र, शंघाई सहयोग संगठन जैसे क्षेत्रीय मंच हों, या फिर ईरान, चीन, तुर्की और भारत जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय संवाद.''
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के मल्टीमीडिया एडिटर और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्ट्रैटजिक स्टडीज़ लंदन में असोसिएट फ़ेलो दाऊद अज़ामी बताते हैं कि मुत्तक़ी एक अच्छे वक़्ता हैं, दूसरों को अपनी बातों के लिए मनवा लेना उनकी कला है.
वो कहते हैं, ''मुत्तक़ी को कई चुटकुले आते हैं और वो इसका इस्तेमाल अपनी बात मनवाने और अपना पक्ष मज़बूत करने के लिए अक्सर किया करते हैं.''
यूएनएससी में प्रतिबंधित 'आतंकवादियों' की सूची में शामिलसाल 2001 में जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार थी ही, तभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रतिबंधित आतंकवादियों की सूची में अमीर ख़ान मुत्तक़ी को शामिल किया था.
वो तब तालिबान सरकार में शिक्षा मंत्री थे और तालिबान पर अल-क़ायदा को पनाह देने और उनका समर्थन करने के आरोप थे.
मुत्तक़ी समेत तालिबान के सभी शीर्ष नेताओं को यूएन की 'आतंकवादी सूची' में जोड़ा गया था.
मुत्तक़ी पर अभी तक यूएनएससी ने तीन तरह के प्रतिबंध लगाए हुए हैं. पहला, वो किसी भी देश में स्वतंत्र रूप से यात्रा नहीं कर सकते. दूसरा, उनकी संपत्ति फ्रीज़्ड है और तीसरा कि उन्हें कोई हथियार या सैन्य सामग्री मुहैया नहीं कराए जाएँगे.
हालाँकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति ने मुत्तक़ी को भारत दौरे के लिए यात्रा की छूट दी हुई है.
यात्रा पर उठते सवालहालाँकि मुत्तक़ी के भारत दौरे और यहाँ होने वाली मेहमाननवाज़ी को लेकर कई लोग सवाल उठा रहे हैं.
जैसे - अफ़ग़ानिस्तान के पत्रकार हबीब ख़ान ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा है, ''डियर इंडिया, तालिबान के अधिकारियों की मेहमाननवाज़ी अफ़ग़ान राष्ट्र के साथ एक धोखा है और उन लड़कियों के मुँह पर तमाचा, जिनके स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. उस शासन की ख़ुशामदी न हो, जो आतंक और महिलाओं के उत्पीड़न से बना है.''
तालिबान के पहले कार्यकाल के शुरुआती सालों में ही तालिबान पर मानवाधिकार के उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार से जुड़े कई आरोप लगने शुरू हो गए थे.
दूसरे शासनकाल में भी स्थिति वैसी ही है. लड़कियों के लिए स्कूल के दरवाज़े बंद हो गए हैं. लड़कियों की लिखीं किताबों तक पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
- तालिबान सरकार के विदेश मंत्री क्यों आ रहे हैं भारत, अफ़ग़ानिस्तान के मीडिया में ऐसी चर्चा
- तालिबान सरकार को रूस की मान्यता, क्या भारत की रणनीति पर भी पड़ेगा असर?
- तालिबान सरकार के विदेश मंत्री मुत्तकी का भारत आना दोनों देशों के लिए कितना फ़ायदेमंद
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