जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव इतना बढ़ा कि ये सैन्य संघर्ष में बदल गया.
दोनों देशों के बीच हुआ सैन्य संघर्ष 10 मई की शाम को संघर्ष विराम पर सहमति बनने के एलान के साथ थमा.
लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष के दौरान और संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद कई सवाल ऐसे उठे जिसको लेकर काफ़ी चर्चा हुई.
इसमें सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की थी क्योंकि उन्होंने सबसे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच समझौते को लेकर घोषणा की थी. साथ ही चर्चा दोनों देशों के परमाणु हथियारों से संपन्न होने की भी थी.
कैसे हैं हालात?जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद केंद्र सरकार के उस दावे पर सवाल उठे, जिसमें वो कहती रही है कि "जम्मू कश्मीर के हालात सामान्य हो गए हैं."
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी पहलगाम में हुए हमले के बाद कहा था, "सरकार जम्मू-कश्मीर के हालात सामान्य होने के खोखले दावों के बजाय अब जवाबदेही लेते हुए ठोस क़दम उठाए."

सिक्योरिटी को लेकर उठते सवाल पर अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ और इंस्टीट्यूट ऑफ़ कंफ्लिक्ट मैनेजमेंट के निदेशक अजय साहनी कहते हैं, "कश्मीर के अंदरूनी हालात पहले से ही काफ़ी बेहतर हो चुके थे, लेकिन इस एक हादसे से आप कश्मीर की आंतरिक सुरक्षा का आकलन नहीं कर सकते हैं. लोग आज भूल गए हैं कि कश्मीर में 16 साल तक हाई इंटेंसिटी कंफ्लिक्ट रहा है. 2001 में एक साल में 4011 लोगों की जान गई. पिछले साल 127 लोगों की जान गई. मई में 50 लोगों की जान गई. इनमें सुरक्षाकर्मी, आतंकी और नागरिक शामिल हैं."
"तो कश्मीर के हालात पहले से कहीं बेहतर हैं. असेसमेंट की जो ग़लती होती है वो यह है कि सरकार कहती है नॉर्मलसी है और ज़ीरो टेररिज़्म है. ये सिक्योरिटी असेसमेंट नहीं होता. ख़तरा कश्मीर में इस दर्जे का आज भी है और काफ़ी ज़माने तक रहेगा. यह तब तक रहेगा जब तक कि पाकिस्तान अपना पूरा इरादा न छोड़ दे कि कश्मीर से उनका कोई ताल्लुक नहीं है."

अजय साहनी कहते हैं कि पाकिस्तान के लिए लंबी रणनीति होनी चाहिए.
उन्होंने कहा, "शिमला एग्रीमेंट के बाद तो हमने कह दिया था कि जो भी विवाद होगा वो द्विपक्षीय ही तय होगा. दरअसल ये सच्चाई है कि अमेरिका इस झगड़े के बीच में पड़ गया और ज़माने से पड़ने की कोशिश कर रहा है, ये कहने की चीज़ें नहीं होती हैं."
"ओवर्ट रिस्पॉन्स (खुलेआम) की आवश्यकता है ही नहीं, उनको नुकसान पहुंचाने के सौ तरीके हैं. वहीं कोवर्ट रिस्पॉन्स की बात होती है तो इसमें टिट फॉर टैट जैसी चीज़ें नहीं होती हैं. इसमें कई चीज़ें होती हैं, जिससे आप पाकिस्तान को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसमें रेंज ऑफ़ ऑपरेशन्स होते हैं. उसमें इकोनॉमिक, साइबर, इंफोर्मेशन वॉर जैसी चीज़ें शामिल होती हैं. पाकिस्तान के लिए लंबे अरसे की रणनीति होनी चाहिए."
दरअसल, पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कई क़दम उठाए थे. इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी शिमला समझौते समेत भारत के साथ सभी द्विपक्षीय समझौते और सभी तरह के व्यापार निलंबित करने का एलान किया था.
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान.. बांग्लादेश के रूप में एक आज़ाद मुल्क बना.
इसके बाद हुए शिमला समझौते के तहत दोनों देश द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से आपसी मुद्दों को हल करने पर सहमत हुए.

अजय साहनी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "लंबे अरसे से किसी ने हमारी मदद नहीं की, फिर क्यों हम किसी का दरवाज़ा खटखटाते फिरते हैं. दूसरी तरफ़ हम यहां सिर्फ़ विक्टिम नहीं बल्कि विजयी हैं. हमने आतंकवाद को ख़त्म कर दिया है, कहां कश्मीर में एक साल में 4000 लोगों की मौत हुई थी और अब कहां 127 लोगों की मौत हुई है. आतंकवाद जारी है लेकिन ख़त्म भी हो रहा है, ये हमारी अपनी क्षमताओं और हमारे अपने काम की वजह से ख़त्म हुआ है."
पाकिस्तान के साथ सीज़फ़ायर के बाद भारत ने इस पूरे घटनाक्रम में ट्रंप का नाम नहीं लिया, तो इस सवाल पर अजय साहनी कहते हैं, "फिर ट्रंप को झुठलाना चाहिए. आप ट्रंप के सामने खड़े नहीं होंगे तो ट्रंप अपनी जगह बनाएंगे. उनको आप जगह देंगे तो वो फैलेंगे."
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार शाम को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में भारत और पाकिस्तान के बीच 'संघर्ष विराम' की घोषणा करते हुए दावा किया कि बातचीत में अमेरिका ने मध्यस्थता की.
इसके कुछ देर बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म एक्स पर 'संघर्ष विराम' की पुष्टि की.
लेकिन भारत ने अभी तक अमेरिका का ज़िक्र नहीं किया है. ट्रंप के बयान देने और पाकिस्तान के विदेश मंत्री की पुष्टि के बाद भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने मीडिया ब्रीफिंग की और भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष रोकने को लेकर बनी सहमति के बारे में बताया.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के डीजीएमओ के भारतीय डीजीएमओ को फ़ोन कॉल के बाद दोनों देशों में सहमति बनी है. यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में दोहराई.
इसके अगले दिन फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 मई को ट्रुथ सोशल पर लिखा, "मैं इन दोनों महान राष्ट्रों के साथ मिलकर कश्मीर मुद्दे, जो एक हज़ार वर्षों से विवाद में है, उसका समाधान निकालने की आशा करता हूं, ताकि क्षेत्र में शांति और समृद्धि कायम हो सके, और अमेरिका और विश्व के अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ सके!"
ट्रंप ने अपने बयान में कश्मीर मुद्दे का ज़िक्र किया, लेकिन भारत कश्मीर मुद्दे को लेकर कहता रहा है कि वो किसी तीसरे देश की मध्यस्थता इस मसले में स्वीकार नहीं करेगा.

क्या अब भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ बदलेगा, इस सवाल को लेकर अजय साहनी कहते हैं, "मेरे हिसाब से कुछ नहीं बदलने वाला है. एक बात समझिए कि इन्फ़ोर्मेशन वॉरफेयर बहुत अहम भाग है वॉरफेयर का. लेकिन यहां इन्फ़ोर्मेशन वॉरफेयर हम उनके ख़िलाफ़ नहीं कर रहे थे और वो हमारे ख़िलाफ़ नहीं कर रहे थे. दोनों का ध्यान आंतरिक लोगों पर था."
न्यूक्लियर वॉर की चर्चा को लेकर वो कहते हैं, "न्यूक्लियर वॉर ऐसे ही शुरू नहीं होता है. अगर न्यूक्लियर वॉर का हल्का सा भी ख़तरा होता तो दिल्ली की हर एंबेसी ख़ाली हो गई होती. आपको ऑपरेशन पराक्रम का ज़माना याद होगा जब गोली भी नहीं चली थी और दूतावास ख़ाली हो गए थे."
उन्होंने कहा, "न्यूक्लियर शब्द का पाकिस्तान इस्तेमाल कर रहा है और ट्रंप ने भी उसे इस्तेमाल किया है. न्यूक्लियर डिटरेंस का मतलब होता है म्युचअली एश्योर्ड डिस्ट्रक्शन, वो एक साधन या हथियार है जो इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. क्योंकि उससे, सिर्फ़ इन देशों में ही नहीं, इन देशों के आसपास भी और शायद दुनिया में भी हर चीज़ ख़त्म हो जाएगी."
इस बीच सोमवार रात आठ बजे राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, "भारत कोई भी न्यूक्लियर ब्लैकमेल नहीं सहेगा."





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